इतिहास के 3 सबसे घिनौने काम | Top 3 worst jobs in history in hindi
मध्य युग में सबसे खराब नौकरियां [worst jobs in middle ages], अजीब पेशे, gong farmer in hindi, tosher in hindi, leech collector in hindi, अजीबो-गरीब काम, worst jobs in hindi.
आज के समय में कई ऐसे लोग है, जो अपनी नौकरियों और अपने कामों से खुश नहीं होते । काफी लोग ऐसे भी होते है, जिन्हें अपने से ज्यादा दूसरों की नौकरी ज्यादा अच्छी लगती है।
आज नौकरियों में किसी को पैसों की शिकायत होती है, तो किसी को समय की। मगर क्या आपको मालूम है की इतिहास में कुछ ऐसे पेशे भी हुआ करते थे, जो काफी ज्यादा अजीब, काफी खतरनाक और काफी ज्यादा घिनौने भी होते थे।
अगर आज आप उनके बारे में सोचोगे तो आपको अपनी नौकरी लाखों गुना अच्छी लगने लगेगी । तो आइए आज हम वैसे ही कुछ पेशों के बारे में जानते है, जिन्हें मध्य युग के दौरान सबसे अजीब और सबसे घिनौने पेशों के रूप में देखा जाता था।
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World’s worst jobs in hindi
Worst jobs : Gong farmer (गोंग किसान)
यह वह लोग होते थे, जो मानव मल को शौचालय से निकालकर दूसरी जगहों पर फेंका करते थे । इस पेशे का चलन यूरोप में काफी ज्यादा था। पहले के समय शौचालयओं में मल के निकासी का कोई तरीका मौजूद नहीं होता था, जिस कारण gong farmers का काम काफी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता था। यह काफी जरुरी होता था की, मल की निकासी सही ढंग से की जाए, ताकि समाज सही तरीके से चलता रहे। 15वी और 16वी सदी के दौरान इंग्लैंड में यह काम काफी ज्यादा प्रचलित था।
हालाँकि इस काम को काफी ज्यादा अजीब और घिनौना माना जाता था और इसी कारण gong farmer को सिर्फ रात में काम करने की अनुमति मिलती थी। रात के अँधेरे में काम करने के कारण इन्हें “nightmen” भी कहा जाता था, और ये लोग जो मल इकठ्ठा करते थे उस मल को “night soil” कहा जाता था। जिसे बाद में शहर की सीमा से बाहर ले जाकर फेंक दिया जाता था।
आधुनिक समय से पहले शहरी क्षेत्रों में आमतौर पर सार्वजनिक शौचालय का उपयोग किया जाता था, जिनके नीचे काफी बड़े गड्ढे बनाए जाते थे, ताकि वहा मल को इकट्टा किया जा सके । अच्छी साफ़-सफाई के लिए यह काफी जरुरी होता था की इन शौचालयओं को समय-समय पर साफ़ किया जाए ताकि गंदगी और बिमारियों को शहर में फैलने से रोका जा सके।
सही तरीकों से बने शौचालयओं को साल में एक बार साफ़ करने की आवश्यकता होती थी । मगर कुछ ऐसे भी थे जिन्हें साल में कई बार साफ़ किया जाता था।
इस मल को शहर के बाहर एक निश्चित जगह पर फेंका जाता था और कभी-कभार इनसे खाद भी बनाई जाती थी। Gong farmers का काम अच्छा नहीं माना जाता था, इसलिए इसे करने वाले लोग बाकीयों को अपने काम के बारे में कुछ नही बताया करते थे।
इनका काम जितना अजीब था, उतना ही जोखिम भरा भी होता था, उनका काम करने का एक निश्चित तरीका होता था, जैसे की –
- इस काम को एक बार में तीन या चार लोगों द्वारा किया जाता था, जिनका काम अलग-अलग हुआ करता था।
- शौचालयओं के नीचे बने गड्ढो में जो लोग उतरते थे, उन्हें “whole men” कहा जाता था । नीचे उतरने के बाद, वह लोग अपने साथ ली गयी बाल्टियो में मल को भरना शुरू करते थे।
- इसके बाद बाहर मौजूद सदस्य जिन्हें “ropemen” कहा जाता था, रस्सियों की मदद से बाल्टियों को बाहर निकालते थे।
- फिर इन बाल्टियों को “tub men” को दे दिया जाता था, यह वह लोग होते थे जो इन्हें लेकर शहर के बाहर ले जाने वाली हाथ-गाड़ियों को चढ़ाते थे।
काफी समय शौचालयओं को सही तरीके से साफ़ ना करने के कारण मल शौचघर से बाहर निकलकर सड़कों पर फ़ैल जाता था। सही से साफ़ ना करने के कारण मल कभी-कभार पानी में भी घुल जाया करता था, जिस कारण बीमारियों के फैलने का खतरा काफी ज्यादा बढ़ जाता था। इन्ही सब कारणों के चलते gong farmer का काम काफी ज्यादा महत्वपूर्ण था, ताकि लोगों का जीवन सही तरीके से चलता रह सके।
हालांकि इस काम के महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ यह काम gong farmers की सेहत के लिए काफी ज्यादा खतरनाक बनता जा रहा था। काम के दौरान मल से सीधा संपर्क होने के चलते उन्हें काफी ज्यादा संक्रमण होने का खतरा होता था।
और साथ ही शौचालयओं के नीचे बने गड्ढो में साफ़ हवा की कमी होने के कारण काफी लोगों की मौत दम घुटने के कारण भी हुआ करती थी । कभी-कभी मल के गढ़ों में गलती से पैर फिसलकर गिर जाने के कारण भी gong farmers की मौत हो जाया करती थी।
इस काम के लिए अच्छे पैसा मिलने के बादजूद भी इस काम को अजीब और काफी ज्यादा घिनौना समझा जाता रहा, साथ ही यह काम करने वालों को बाकि लोगों द्वारा हमेशा नीची नजरों से देखा जाता था। मगर 19वी सदी के दौरान अच्छे शौचालय और अच्छे मल निकाशी के तरीकों के इजाद होने के बाद यह पेशा धीरे-धीरे ख़त्म होता गया।
फ्लश टॉयलेट और शहरों में अच्छे नालों के बनने से अब मल की निकाशी में किसी भी तरह की परेशानी नही हुआ करती थी, और बहुत ही साफ-सुथरे तरीकों से इस काम हो कर लिया जाता था । और इसी तरह इस अजीब पेसे का भी अंत हो गया।
Worst jobs : Tosher (तोषेर)
इन लोगों को “sewer hunters” यानि की नालो के शिकारी के नाम से भी जाना जाता था । विक्टोरिया काल के दौरान लंदन में इस पेशे का अच्छा-खासा चलन था। यह वह लोग होते थे, जो गंदे नालों में कीमती चीजों की तलाश में जाया करते थे। जो चीज़े गलती से लोगों द्वारा नालों में गिर जाया करती थी, वो यह tosher नालों में ढूंडा करते थे, ताकि उन्हें बेचकर पैसे कमा सके। इन चीजों में ज्यादा तर सोने और तांबे के सिक्के हुआ करते थे।
विक्टोरिया-काल के दौरान लंदन की आबादी काफी ज्यादा बढ़ रही थी, जिस कारण इस शहर के नालों पर वहां की गंदगी को संभालने का काफी ज्यादा बोझ बढ़ रहा था। इन्ही सब कारणों के चलते toshers का काम भी काफी ज्यादा मुश्किल और जोखिम भरा हो गया था। जैसे की –
- अक्सर नालों की अंधेरी सुरंगों में उनके ऊपर मलबे टूट कर गिरा करते थे, जिस कारण काफी लोग वही जिन्दा दब जाते थे।
- इनके अलावा लंदन शहर के नालों की भूल-भुलैया में काफी tosher खो जाया करते थे, और कभी वापस लौट नहीं पाते थे।
- इसके अलावा नालों में ताज़ी हवा की कमी और लगातार बन रहे जहरीली गैसों के कारण उनकी दम घुटने से भी मौत हो जाया करती थी।
- कभी-कभी नालों में अचानक पानी भर जाया करता था, जिस कारण toshers की डूबने से भी मौत हो जाया करती थी।
- उन्हें सबसे ज्यादा खतरा उन अँधेरी सुरंगों में रहने वाले चूहों से हुआ करता था, जो की हमेशा लोगों को काटने के लिए तैयार होते थे । साथ ही उन चूहों से काफी खतरनाक बीमारियों के फैलने का खतरा भी बना रहता था।
- इसके चलते काफी toshers की गंभीर बीमारियों से मौत हो जाया करती थी।
- कभी-कभार toshers के ऊपर चूहों झुंड में हमला कर दिया करते थे, और उन्हें नोच कर खा जाया करते थे, और उनकी लाश अगले दिन उनके साथियों को मिला करती थी।
इन्ही सब खतरों को ध्यान में रखते हुए, toshers हमेशा नालों में दो-तीन के समूह में जाया करते थे, जिसकी अगुवाई कोई अनुभवी tosher किया करता था, ताकि कोई हादसा होने पर बाकियों की मदद ली जा सके। Toshers अपने काम के लिए कई तरह के औजारों का इस्तेमाल किया करते थे।
जैसे की अँधेरे में रौशनी के लिए लैंटर्न, लगभग आठ फीट लम्बा एक रोड जिसके आखिर में लोहे का कुदाल लगा हुआ होता था। इस रोड का इस्तेमाल तब किया जाता था, जब कोई tosher किसी दलदली सतह पर फस जाया करते थे।
तब इसमें लगे हुए लोहे के कुदाल को किसी मजबूत जगह पर फसाकर वे खुद को उस दलदल से बाहर खीचने की कोशिश किया करते थे। साथ ही इनका इस्तेमाल किचर में कीमती चीजों को ढूंढने के लिए भी किया जाता था। और एक पैन ताकि नालों में मिले चीजों को छाना जा सके, और उनसे कीमती वस्तुओ को अलग किया जा सके।
Toshers नालों में जाने से पहले अपने खास पोशाकों को पहना करते थे। वह लंबे coat जैसे कपरे पहनते थे, जिनमे बड़े-बड़े pockets हुआ करते थे, जिनमे वह नालों से मिले कीमती वस्तुओ को रखते थे। साथ ही वह मोटे कपड़े के बने pants और मोटे जूतों का भी इस्तेमाल किया करते थे । इनके अलावा वह अपने साथ में एक छोटा बैग भी रखा करते थे।
मगर साल 1840 के बाद लंदन के नालों में बिना इजाजत के जाना गैर कानूनी घोषित कर दिया गया। नालों के अंदर होने वाले खतरों को देखते हुए इस फैसले को लिया गया। बिना इजाजत के नालों में जाने पर toshers पर जुर्माना भी लगाया गया, साथ ही जेल तक भेजा जाने लगा । इसके अलावा भी अगर कोई व्यक्ति किसी के नालों में जाने की पक्की खबर देता, तो उसे अच्छा-खासा इनाम भी दिया जाता था।
इन्ही सब कारणों के चलते toshers ने रात में नालों में जाना शुरू किया, जब उन्हें कोई देख ना सके। हालाँकि काफी लोग इस काम को अजीब और घिनौना समझते थे, मगर toshers इस काम को काफी अच्छा मानते थे, और खुद को खोजी समझते थे। इसके अलावा इस काम से उनकी अच्छी-खासी कमाई भी हो जाया करती थी, जो की थी हर दिन लगभग छह shillings।
इसी काम ने उन्हें victorian लंदन के शीर्ष कमाई वाले वर्ग में से एक बना दिया था। और इन्ही सब कारणों से चलते वे लोग इस काम को रात के अँधेरे में भी कर रहे थे, और बिना ज्यादा फ़िक्र के अपने काम को आगे बढ़ाये जा रहे थे।
Worst jobs : Leech collector (जोंक एकत्र करने वाले)
जोंकों को इतिहास में हमेशा से ही medicines में इस्तेमाल किया जा रहा है । सिर दर्द से लेकर हिस्टीरिया बीमारी के इलाज में भी इनका इस्तेमाल किया जाता था । मिश्र के पुराने लेखचित्रो में भी इनका वर्णन किया गया है। मध्य युग के दौरान जोंकों का इस्तेमाल नाई सर्जन और प्लेग महामारी के डॉक्टरों द्वारा भी किया जाता था, ताकि यह बीमार व्यक्ति के शरीर से ख़राब खून को बाहर निकल दे ।
हालाँकि सन 1800 के शुरुवात में अमेरिका और यूरोप में जोंकों के इस्तेमाल का चलन काफी ज्यादा बढ़ गया, जैसा अब तक कभी नही देखा गया था। वहां चिकित्सक द्वारा लोगों के इलाज के लिए जोंकों को काफी बड़ी संख्या में इस्तेमाल किया जा रहा था। चिकित्सक जोंकों को मरीजों के मुंह में दाल दिया करते थे, जिस कारण कभी-कभार ये लोगों के अंदर तक चले जाते थे।
सन 1830 के दौरान जोंकों का इस्तेमाल अपने चरम पर था। इस समय तक इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी और अमेरिका में हर साल लाखों की संख्या में जोंकों का इस्तेमाल लोगों के इलाज के लिए किया जा रहा था।
इन्ही कारणों के चलते जोंकों की मांग भी काफी ज्यादा बढ़ गयी । यही से leech collectors यानि की जोंकों को इकठ्ठा करने वाले काम का चलन शुरू हुआ, और हर जगह इन्हें देखा जाने लगा। उन्हें इकठ्ठा करने का काम भी काफी दिलचस्प होता था, जैसे की –
- आम तौर पे जोंकों को इकठ्ठा करने के लिए पुराने घोड़ो का इस्तेमाल किया जाता था । घोड़ो को पानी में खड़ा रखा जाता था, ताकि जोंक उनके शरीर से चिपक जाए, और बाद में उन्हें जमा कर लिया जा सके।
- मगर कभी-कभार घोड़ो के ना होने पर leech collectors खुद ही पानी में उतर जाते थे, ताकि जोंक उन्हें ही मवेशी समझ कर उनके पैरों से चिपक जाए । इसी कारण जोंक उनके पैरों से भी काफी ज्यादा खून पी जाया करते थे।
ज्यादातर leech collector औरते ही हुआ करती थी । इस पेशे को ज्यादातर देहाती इलाकों में रहने वाली गरीब औरतों द्वारा ही किया जाता था, ताकि वह कुछ पैसे कमा सके।
हालाँकि इस काम को करने के लिए ज्यादा ताकत की जरुरत नहीं हुआ करती थी, मगर फिर भी यह काम काफी ज्यादा खतरनाक था । कभी-कभी ज्यादा खून निकल जाने के कारण या खतरनाक संक्रमण के कारण leech collectors की मौत भी हो जाया करती थी।
जोंक उनके शरीर से लगभग 20 मिनट तक चिपके रहते थे, और कभी-कभार उनसे बने घावों से खून लगभग 10 घंटों तक बहता रहता था। जिस कारण उनकी हालत काफी ज्यादा ख़राब हो जाया करती थी। एक बार में काफी जोंकों के इकठ्ठा होने पर leech collectors उन्हें बाल्टी में भरकर चिकित्सकों को यहा बेच आया करते थे।
जोंक इकठ्ठा करने वालों को इस काम के ज्यादा पैसे भी नही मिलते थे। इस काम को सिर्फ गर्मी में मौसम में ही किया जाता था, क्युकी ठंड के दौरान जोंक ज्यादा सक्रिय नही होते थे, जिस कारण वह आसानी से पकड़ में नही आते थे।
मगर जोकों को हद से ज्यादा इकट्ठा करने के कारण यूरोप में यह खून चूसने वाले जीव विलुल्पी की कगार पर पहुच गए। इन्ही कारणों के चलते इस पेशे का भी अंत पास आता गया।
साथ ही चिकित्सा छेत्र में नए-नए आविष्कारों और खोजों के आने से 19वी सदी के अंत तक चिकित्सकों द्वारा भी जोकों का इस्तेमाल काफी ज्यादा कम हो गया। और इसी के साथ इस पेशा का पूरी तरह से अंत हो गया।
आशा करता हूं कि आज आपलोंगों को कुछ नया सीखने को ज़रूर मिला होगा। अगर आज आपने कुछ नया सीखा तो हमारे बाकी के आर्टिकल्स को भी ज़रूर पढ़ें ताकि आपको ऱोज कुछ न कुछ नया सीखने को मिले, और इस articleको अपने दोस्तों और जान पहचान वालो के साथ ज़रूर share करे जिन्हें इसकी जरूरत हो। धन्यवाद।
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