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The French revolution विषय की जानकारी, कहानी | The French revolution summary in hindi

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क्या आप एक नौवीं कक्षा के छात्र हो, और आपको NCERT के history ख़िताब के chapter “The French revolution” के बारे में सरल भाषा में सारी महत्वपूर्ण जानकारिय प्राप्त करनी है? अगर हा, तो आज आप बिलकुल ही सही जगह पर पहुचे है। 

आज हम यहाँ उन सारे महत्वपूर्ण बिन्दुओ के बारे में जानने वाले जिनका ताल्लुक सीधे 9वी कक्षा के इतिहास के chapter “The French revolution” से है, और इन सारी बातों और जानकारियों को प्राप्त कर आप भी हजारो और छात्रों इस chapter में महारत हासिल कर पाओगे।

साथ ही हमारे इन महत्वपूर्ण और point-to-point notes की मदद से आप भी खुदको इतना सक्षम बना पाओगे, की आप इस chapter “The French revolution” से आने वाली किसी भी तरह के प्रश्न को खुद से ही आसानी से बनाकर अपने परीक्षा में अच्छे से अच्छे नंबर हासिल कर लोगे।

तो आइये अब हम शुरु करते है “The French revolution” पे आधारित यह एक तरह का summary या crash course, जो इस topic पर आपके ज्ञान को बढ़ाने के करेगा आपकी पूरी मदद।

The French revolution : शुरुवात 

इसकी शुरुवात 14 जुलाई सं 1789 में हुई, जब पुरे पेरिस शहर  हड़कंप मचा हुआ था। तब इस हंगामे  में लगभग 7 हज़ार लोग इकठ्ठा हो चुके थे, और वे सभी एक साथ  लड़ने के लिए, क्युकी वे सभी तब वहां के राजा से तंग आ चुके थे। और ऐसा इसलिए हुआ था, क्युकी वहां  राजा को अपनी प्रजा का बिलकुल भी ख्याल नहीं था। 

उस दिन लोग बन्दुक लेकर “Bastille” नामक जेल में घुस गए, ऐसा इसलिए हुआ क्युकी सभी लोग उस जेल से नफरत करते थे, क्युकी यह जेल प्रजा के ऊपर राजा के ताकत को दर्शाता था। फिर ग़ुस्से में पागल लोगों ने उस जेल कमांडर को भी मार दिया। साथ ही वहा कैद सभी कैदियों को भी छुड़ा दिया। और यह दिन फ्रेंच क्रांति का एक यादगार दिन बना।

Revolution (क्रांति) का मतलब क्या होता है?

इसका अर्थ होता है, जब बहुत सारे लोग इकठ्ठा हो जाये, ताकि एक बहुत बड़े राजनैतिक बदलाव को लाया या साकार किया जा सके, और साथ ही इससे काफी कम समय में किया जाता है ।

फ्रेंच क्रांति की शुरुवात और इसके होने का कारण?

तब वहां के राजा “Louis XVI” थे, जो की “Bourbon” परिवार से थे। इन्हे सन 1774 फ्रांस का राजा बना दिया गया, और सिर्फ 20 साल की उम्र में उनकी शादी भी हो गयी थी। उनकी रानी थी “Austria” की राजकुमारी “मारिया”। Louis XVI के समय में राजकोष यानि की सरकारी धन लगभग ख़त्म हो था, जिनके कई कारण थे, जैसे की –

  • तब फ्रांस ने सालो तक काफी युद्ध लड़ना लड़े थे, जिस कारण उनका काफी पैसा इसमें ख़त्म हो गया।
  • फ्रांस में एक जगह थी “Versailles” जहाँ एक काफी आलीशान और सुन्दर महल मौजूद था, और इस महल के maintenance में काफी पैसा खर्च होता था।
  • तब फ्रांस का दुश्मन था ब्रिटैन, और तब अमेरिका की 13 कॉलोनी ब्रिटैन के कब्जे में थी, जिसे फ्रांस ने युद्ध लड़कर आजाद करवाया । लेकिन इसमें फ्रांस का काफी पैसा गया, और वह पूरी तरह से कर्ज में दुब गया। उस समय फ्रांस की currency थी लुअर, जो की साल 1794 के बाद बंद हो गया था, और उस वक़्त फ्रांस के ऊपर लगभग 2 बिलियन लुअर का कर्ज हो गया था।
  • जिन्होंने सरकार को कर्ज दिया, वो उनसे 10% का interest लेते थे, जिस कारण तब सरकार के बजट का एक बहुत बड़ा हिस्सा सिर्फ लोन interest चुकाने ही निकल जाता था। 
  • इनके अलावा सरकार के कई और खर्च भी थे, जैसे सरकारी संपत्ति जैसे की पोस्ट ऑफिस, विश्वविद्यालय, आदि को चलाना, अफसरों की तनख्वा, आदि, जिस कारण भी उनका सरकरी खजाना तेजी से खत्म हो रहा था, और जिस कारण तब सरकार को टैक्स भी बढ़ाना पड़ा।

फ्रांस का समाज (society of france)

तब फ्रांस के लोग तीन estate में बटे हुए थे, 1st estate में वह लोग थे, जो church में काम करते थे, और उन्हें लोग लोग “Clergy” कहते थे। 2nd estate में आते थे, राजा, मंत्री और सरकार के बाकी बड़े रैंक के लोग, जिन्हे लोग “Nobility” कहते थे। और 3rd estate में आते थे आम लोग, जैसे व्यापारी, सोदागर, वकील, किसान और नौकर।

फ्रांस समय 90% आबादी किसानो की थी, पर उनमे से कुछ ही ऐसे किसान थे, जिनके पास अपनी खुद की जमीन थी। तब 60% से ज्यादा जमीने चर्च, नोबल और 3rd estate के अमीर लोगों के पास थी। इसके अलावा तब Clergy और Nobility को कुछ सुविधाएं भी दी जाती थी, और उनमे से एक था टैक्स से छूट। इसी कारण टैक्स का पूरा बोझ सिर्फ 3rd estate के ऊपर था। Clergy और Nobility को इसके अलावा कई और सुविधाएं भी मिलते थे, जैसे 3rd estate के लोगों से काम करवाना।

3rd estate पर उस वक़्त कई तरह के टैक्स लगे हुए थे, इसके अलावा तब चर्च भी 3rd estate से टैक्स लेते थे, जिसका नाम था “थाइस” जिसमे किसान अपनी फसल का 10% चर्च को दे देते थे। इसके अलावा उनपर एक डायरेक्ट टैक्स भी था, जिसका नाम था “Taille” और इनके अलावा भी  तब उनपर कई और तरह से टैक्स भी लगे हुए थे।  

साल 1715 में फ्रांस की आबादी लगभग 23 मिलियन थी, जो की साल 1789 में बढ़कर 28 मिलियन हो गयी। आबादी के साथ तब खाने की मांग भी बड़ी, लेकिन फसल तब उतनी तेजी से नहीं बढ़ पायी, जो इतनी आबादी का पेट भर पाती। फसल की कमी के कारण तब महंगाई भी काफी ज्यादा बढ़ गयी, लकिन मजदुर लोगों की आय में कोई बृद्धि नहीं हुई थी। इस कारण ग़रीब लोग और गरीब होते चले गए, और अमीर लोग और ज्यादा अमीर।  

फिर जब सूखे के कारण सारी फसल बर्बाद हो गयी, जिसे “subsistence crisis” कहा जाता है, जब हमारी मौलिक आवश्यकताएं भी खतरे में पड़ जाती है। तो इस संकट से तब ब्रेड के दाम इतने बढ़ गए, की लोगों ने 14 जुलाई, 1789 को इसके खिलाफ काफी बड़ा विरोध प्रदर्शन किया। हालाँकि इस दिन से पहले भी बहुत सारी छोटी- मोटी बग़ावते हुई थी, लेकिन उनमे से कोई भी इतनी मजबूत नहीं थी की, एक बड़ा बदलाव ला सके। 

तो इस बग़ावत के कुछ मुख्य कारण थे, जैसे की –

  • टैक्स का बढ़ना। 
  • खाने की कमी, और उनकी कीमत।

The French revolution : दार्शनिक के बिचार 

इन विरोधो के पीछे philosopher यानि की दार्शनिक लोगो का काफी बड़ा हाथ था। तो तब दो दार्शनिक “John Locke” और “Jean Jacques Rousseau” के विचार थे की एक ऐसी सोसाइटी होनी चाहिए जाना पर सबके पास आजादी हो, और सारे के सारे कानून सब पर बराबर लागु किये जाये। और इन्ही विचारो पर John Locke ने “Two Treaties of government” नामक किताब लिखी, जिसमे उन्होंने “monarchy” सिस्टम को बेकार बताया, और इनकी तरह-तरह की गलतियां गिना दी।

वही Jean Jacques Rousseau ने बताया की एक ऐसी सरकार होनी चाहिए, जिसमे नेता अपने लोगों की समस्या सुनता हो, और यह सारी बाते उन्होंने अपनी एक किताब “The Social Contract” में लिखा। इनके अलावा एक और philosopher “Montesquieu” ने कहाँ की सरकार के जो तीन branches होती है, legislature, executive और judiciary उनके बिच पावर बटी हुई होनी चाहिए। तो इन सभी के ideas पर तब हर जगह चर्चे हुआ करते थे।

टैक्स का सिस्टम (Tax system)

उस समय टैक्स बढ़ाने की पावर सिर्फ मोनार्क यानि की राजा के पास नहीं होती थी। टैक्स बढ़ाने के लिए उन्हें Estate जनरल की मीटिंग बुलानी पड़ती थी, और इसमें तीनो एस्टेट के प्रतिनिधि, यानि की नेता आते थे, और फिर उन सभी के सहमति से ही किसी तरह के टैक्स पास होते थे। मगर आखिर बार यह मीटिंग साल 1614 में हुई थी, और इस मीटिंग को बुलाने की पावर सिर्फ मोनार्क के पास थी। फिर 5 मई, 1789 में, Louis XIV ने टैक्स बढ़ाने के लिए Estate जनरल की मीटिंग बुलाई, जो Versaille के हॉल में हुई।  

इस मीटिंग में 1st और 2nd estate के 300-300 सदस्य आये हुए थे, और वे लोग आमने-सामने बैठे हुए थे, और 3rd estate से लगभग 600 सदस्य आये थे, जो की पीछे खड़े हुए थे। तब किसान, कलाकार और महिलाओ को assembly आने से मना करके रखा गया था। यहाँ 3rd estate वाले लगभग 40 हज़ार शब्दों में अपनी मांगे लेकर आये, मगर इसपर कुछ खाश ध्यान नहीं दिया गया। यहाँ तीनो एस्टेट के पास एक-एक वोट होते थे, और 3rd estate वाले जानते थे की, इस सिस्टम से उनके ऊपर टैक्स आराम से लागु करवा दिया जायेगा और इसी कारण उन्होंने तब वोटिंग के इस तरीके को बदलने की मांग करी।     

उनकी मांग थी की assembly के हर मेंबर के पास अपना एक वोट हो, और असेंबली का हर मेंबर वोट करे। और इस प्रकार वह 1 estate 1 वोट को 1 मेंबर 1 वोट में बदलना चाह रहे थे। मगर राजा के इनके इस मांग को मानने से साफ़ मना कर दिया, इस कारण 3rd estate वाले इसका विरोध करने के लिए assembly से उठकर बाहर चले गए।  

तब 3rd estate के नेता खुद को फ्रांस का मुखिया मानने लग गए। फिर 20 जून, 1789 में वे सभी Versaille इंडोर टेनिस कोर्ट में जमा हुए, और उन्होंने अपने आप को ही “नेशनल असेंबली” घोषित कर दिया। फिर उन्होंने प्लान बनाया की, वे वहां बैठकर फ्रांस का संविधान लिखेंगे, जिसमे राजा की ताकत काफी कम कर दी जाएगी। और उन्होंने तब ठान लिया की बिना फ्रांस का संविधान बनाये वे वहां से कही नहीं जायेंगे।  

तब इनको लीड करने वाले दो इंसान थे, “Mirabeau” और “Abbe Sieyes”, हालाँकि Mirabeau एक नोबेल परिवार में पैदा हुए थे, यानि की वह 2nd estate से आते थे, मगर वह 1st और 2nd estate को मिलने वाले सुविधाओं के बिलकुल खिलाफ थे, और तब उनके भाषण भी काफी पावरफुल हुआ करते थे। वही Abbe Sieyes एक पुजारी थे, और उन्होंने एक किताब “What is the 3rd estate” भी लिखी थी।  

तो जब वे लोग फ्रांस का संविधान लिख रहे थे, फ्रांस के सारे-सारे लोग काफी ग़ुस्सा हो गए थे। साथ ही तब ख़राब सर्दियों के कारण, फसले भी ख़राब हो गयी थी, और तब वह ब्रेड दाम आसमान छू रहे थे, इसी क्रम में 14 जुलाई, 1789 में लोगो ने Bastille तोड़ दिया, और राजा देखते के देखते रह गए।

The french revolution : फैली अफवा 

तब देश के कोने-कोने में अफवा फ़ैल गयी थी की, 2nd estate के लोगों ने कुछ लोगों को किसानों की फसल को बर्बाद करने के लिए भेजा है, और यह बात सुनकर किसान लोग पूरी तरह से भरक गए और हतियार लेकर नोबेल परिवारों के घरो पर हमला कर दिया। उनके घर लूट लिए गए और सारे जरुरी कागजो को जला दिया गया। इसके डर से तब कुछ नोबेल लोग तो देश छोड़के भी भाग गए। 

तब देश में इतनी ज्यादा बगावत हो गयी की Louis XIV को तब अपने घुटने टेकने पर गए। इसके बाद 1st और 2nd estate की सभी सुविधाओं को ख़त्म कर दिया गया और Louis XIV की ताकत वको भी काफी कम कर दिया गया और साथ ही चर्च की जमीने लेकर किसानो में बाट दी गयी। यह सारे फैशले 4 अगस्त 1789 की रात को लिए गए, और अब फ्रांस monarchy से constitutional monarchy बन गयी।

The French revolution : बना नया संविधान 

फिर नेशनल असेंबली ने 1791 में देश का असली संविधान तैयार कर दिया, जिसका मकसद था राजा की ताकत को एक सीमा में रखना, ताकि ऐसा  ना हो सके की जो राजा चाहे, देश में सिर्फ वही हो। फिर सरकार को तीन हिस्सों में बाटा गया, legislature, executive और judiciary, यहाँ legislature वो विभाग है, जो नियम बनाते है, executive वह है, जिनका काम होता है, यह सुनिश्चित करना की बने हुए नियम सही तरीके से पालन हो रहे है या नहीं, और judiciary वह विभाग है, जो नियमो का पालन ना करने वालो को संभालती है। 

लेकिन तब 28 मिलियन की जनसँख्या में से सिर्फ 4 मिलियन लोग की वोट कर सकते थे, और यह लोग  50 हज़ार electors, और एक जज को चुनते थे। फिर उन 50 हज़ार में से वोटिंग की मदद से 745 मेंबर को नेशनल असेंबली के लिए चुना जाता था, जो की राजा पर control रखते थे। तब राजा के बची थी “VETO Power”, यानि उनकी मर्जी के बिना कुछ भी नियम लागु नहीं हो सकते थे।  

इसके अलावा नेशनल असेंबली मंत्रियो पर भी कण्ट्रोल रखती थी। देखा जाये तो, तब  फ्रांस की जनता indirectly नेशनल असेंबली चुनते थे, क्युकी citizens, electors के लिए वोट करते थे, और फिर electors नेशनल असेंबली के लिए वोट करते थे।

The French revolution : वोटिंग का अधिकार 

जो लोग तब फ्रांस में वोट डाल सकते थे, उन्हें “active citizen” कहा जाता था, और जो वोट नहीं दे सकते थे, उन्हें “passive citizen” कहा जाता था।   Active citizen के अंदर वो लोग थे, जो की male थे, और जनकी उम्र 25 साल से ज्यादा थी, और एक मजदुर की 3 दिन की कमाई के जितना टैक्स देता हो। साथ ही ज्यादा तर नेशनल असेंबली के मेंबर वही लोग बनते थे,  टैक्स देते थे। 

वहां संविधान की शुरुवात “declaration of rights of men and citizen” से होती है, जिसमे जरुरी बाते जैसे की right to speech, right to life, equality before law, को रखा गया और यह अधिकार male से लेकर female तक सभी को मिले, और इनके rights को protect करने की जिम्मेदारी खुद सरकार की थी।

संविधान बनने के बाद भी तनाव 

साल 1789 के बाद भी फ्रांस में टेंशन बानी रही। क्युकी तब राजा ने संविधान पर अपनी सहमति तो दे दी थी, मगर पीठ-पीछे वह परसिआ के राजा के साथ ख़ुफ़िया तरीके से बात-चित भी कर रहे थे, तब वह प्लान बना रहे थे की, Louis XIV को दोबारा से पूरी ताकत कैसे दी जाए। तब बाकि पडोसी देश के राजा भी काफी परेशान हो गए की, क्युकी उन्हें लगा की कही फ्रांस के देखा-देखि उनके देश में भी बगावत ना हो जाये। और इसीलिए वे सभी जंग की तयारी में लग गए, लेकिन इससे पहले वह कुछ करते फ्रांस की नेशनल असेम्ब्ली ने पर्शिया ऑस्ट्रिया के खिलाफ जुंग की घोषणा कर दी। 

The French revolution : जंग का माहौल 

जब बात देश पर आयी, तो फ्रांस के हज़ारो लोग सेना में शामिल हो गए, और यह जंग राजाओं और आम लोगों के बिच की बन गयी। देश में जुंग के दौरान देश भक्ति के गाने खुद प्रचलित हुए, जिनमे फ्रांस का मुख्य गाना था “Marseillaise” जिसे “Rouget de lisle” द्वारा लिखा गया था। और यह गाना पहली बार कुछ लोगों ने गाया था, जो की “Marseilles” से पेरिस सेना में शामिल होने के लिए जा रहे थे। और आज यह फ्रांस का राष्ट्रगान है।  

इस जुंग के कारण एक बार फिर फ्रांस की इकॉनमी काफी निचे चली गयी और लोग आर्थिक समस्या से लड़ने लगे। जब सारे आदमी जंग के लिए चले गए, तब घर की महिलाए घर संभाल रही थी। उस समय नेशनल असेंबली के मेंबर बनने में सिर्फ आमिर लोग ही शामिल थे, लेकिन धीरे-धीरे इन सब में भी बदलाव आने लगे, तब middle class लोग राजनीति में interest दिखाने लगे। 

तब वहां political क्लब यानि की political parties बनने लगी, और इनमे से जो सबसे सफल क्लब थे, वह था “Jacobin club”, और इसमें ज्यादातर छोटे दूकानदार, घडी बनाने वाले, मोची, नौकर, मजदुर आदि लोग शामिल थे। और उनके नेता “Maximilien Robespierre” थे।

फिर 1792 की गर्मियों में खाने के दाम बहुत ज्यादा बढ़ गए, जिस कारण लोग राजा Louis XIV से बहुत ज्यादा ग़ुस्सा हो गए। और इसीलिए लोगों ने इस बार उसे पूरी से जड़ से उखाड़कर फेकना का सोचा। फिर 10 अगस्त 1792 में लोगों ने ट्वालारिस के महल पर हमला बोल दिया, जहाँ राजा मौजूद थे, राजा के सारे गार्ड्स को मार दिया गया और राजा को बंदी बना लिया, जिसके बाद वहां की नेशनल असेंबली ने उसे जेल में दाल दिया।

अब जब वहां सरकार का मुखिया कोई रहा नहीं, इसीलिए वहां चुनाव हुए, और इस बार हर मर्द जिसकी उम्र 21 साल से ज्यादा हो, उसे वोट देने का अधिकार दिया गया। चुनाव के बाद जो नयी असेंबली चुनी गयी, उसका नाम convention रखा गया। 21 सितम्बर 1792 को फ्रांस में monarch ख़त्म हुई, और यह देश एक republic देश बन गया। और फिर 21 जनवरी 1793 को Louis XIV को जनता के बिच फांसी पर लटका दिया गया। और साथ ही उनकी पत्नी को भी मार दिया गया।

The French revolution : नयी सरकार  

वह नयी सरकार Jacobin club द्वारा बनाई गयी, और उसका हेड “Maximilien Robespierre” को बनाया गया, लेकिन वह भी ज्यादा समय तक नहीं टिक पाए, उन्होंने यह जिम्मेदारी सिर्फ साल 1793 से 1794 तक संभाली। और उस समय को ‘Region of terror’ यानि की आतंक का कहा जाता है। तब उन्हें जो भी अपना दुश्मन लगता, वह उन्हें पकड़ कर सजा दिया करते थे। तब उन्होंने पुराने नोबेल मेन यानि की 2nd estate के लोग, चर्च के लोग, दूसरी पार्टी के लोग, यहाँ तक की अपनी पार्टी के लोगों को भी सजा दे दी।   

जिन्हे वह arrest करवाते, और अगर वे कोर्ट में दोषी शाबित हो जाते, तो उन्हें Guillotine की सजा दी जाती, यह 2 पोल और एक ब्लेड से बना device होता है, जिसके निचे एक छेद मौजूद होता था, और जिसमे दोषी के सिर को फसाकर ऊपर से ब्लेड को ब्लेड को छोड़ दिया जाता था, जिससे उनका सिर उनके धर से अलग हो जाता था।

इनके अलावा भी उनकी सरकार ने काफी कुछ किया, जैसे –

  • लोगो को मरवाया जो उनके लिए खतरा बने।
  • उन्होंने सैलरी और चीज़ो के दामों पर maximum लिमिट लगा दी थी।
  • मीट और ब्रेड की खरीद पर लिमिट लगा दिया, ताकि कोई एक amount से ज्यादा यह खरीद न पाए।
  • तब किसानो को अपनी फसल सरकार को एक फिक्स कीमत पर बेचनी पड़ती थी।
  • महंगी ब्रेड जो की सफ़ेद आटे से बनती थी, उसे बंद कर दिया गया, और उनकी जगह equality ब्रेड को लाया गया, जो की सबको खानी पड़ती थी। 
  • उन्होंने मर्दो और औरतो को sir या mam बुलाने की जगह citizen बुलाने की प्रथा भी शुरू करवा दी 
  • साथ ही उन्होंने चर्च बंद करवाकर वह दफ्तर खोल दिए।

तब उनके supporters, उनके इन सारी चीज़ो को लागु करवाने के कारण मांगने लग गए, पर वह किसी की भी नहीं सुनते थे। मगर आखिर में कोर्ट ने उन्हें अपराधी करार कर Guillotine की सजा दे दी। तब Jacobin की सरकार गिरने के बाद जो upper मिडिल क्लास के लोग थे, उनके पास सारी पावर आ गयी, और तब फिर एक बार नया संविधान बनाया गया, और इसके मुताबिक जिसके पास खुद का घर और खुद की जायदात है, अब सिर्फ वही वोट कर सकते है, और यह लोग वोट करके दो legislative council चुनते थे।

फिर यह दो legislative council, डायरेक्टरी बनती थी, जिसमे 5 मेंबर होते थे, ताकि किसी एक के पास सारी पावर न आ सके। मगर फिर डायरेक्टर्स की लड़ाई कॉउंसिल के साथ होने लग गयी, और वह उन्हें dismiss करके उनका काम रोक देते। और इसी कमजोर पोलिटिकल structure के कारण एक military dictator को पॉवर मिल गयी, जिनका नाम “Napoleon Bonaparte” था।

The French revolution : औरतो का सहयोग 

फ्रांस की इस क्रांति में औरतो का काफी बड़ा योगदान था। औरते का फ्रांस के इतिहास में शुरू से ही काफी बड़ा हाथ रहा है, तब फ्रांस में जो-जो बड़े बदलाव आये, उनमे औरतो का काफी बड़ा योगदान था। औरते चाहती थी की उनकी जिंदगी में बदलाव आये। तब 3rd estate औरतो को पैसो के लिए काम करना पड़ता था। उस समय औरते कई तरह के काम किया करती थी,  कपड़े धोना, फूल बेचना, फल सब्जी बेचना या फिर अमीर लोगों के घर में काम वाली नौकरानी बनकर रहती थी। 

तब लड़कियों के लिए एजुकेशन नहीं थी उन्हें स्कूल नहीं जाने दिया जाता था, क्युकी तब सिर्फ 1st और 2nd estate की लड़कियों को ही स्कूल जाने दिया जाता था और बाद में उनकी शादी करा दी जाती थी। 

तब बाहर काम करने वाली औरतो के ऊपर बहुत ज्यादा काम का बोझ था, जैसे खाना बनाना, अपने परिवार को देखना, कुओं से पानी निकालना, ब्रेड के लिए लाइन में लगना, आदि और उनकी तनख्वाह भी मर्दों से काफी कम होती थी। फिर औरतें अपनी मांगों को पूरा करने के लिए पॉलिटिकल क्लब और न्यूज़पेपर जैसी ऑर्गेनाइजेशंस खोल दिए, उस समय 60 पॉलिटिकल क्लब बने जिनमें में सबसे लोकप्रिय क्लब का नाम “The society of revolutionary and republican women” था। तब इनकी काफी मांगे सामने आयी, जैसे की –

  • औरतो को भी पोलिटिकल rights मिले, क्युकी जब 1791 का संविधान बना, तब औरतो को वोट करने का अधिकार नहीं दिया गया।
  • इनके अलावा वे पोलिटिकल representation भी चाहती थी, यानी की legislative असेंबली में मेंबर बनना। लेकिन तब उनकी यह मांगे पूरी नहीं हुई।

हालाँकि सरकार ने तब उनकी जिंदगी को अच्छा बनाने के लिए काफी सारे नियम बनाये, जैसे की – 

  • सरकार ने तब स्टेट स्कूल बनाये, और लड़कियों के लिए स्कूल जाना अनिवार्य कर दिया।
  • अब लडकियो को अपनी इच्छा से शादी करने का हक़ मिल गया, अब उनपर कोई इसके लिए दबाओ नहीं दाल सकता था।
  • शादी को एक contract बना दिया गया, और उससे civil law के under registered करवाना पड़ता था।
  • और साथ ही अब तलाक को भी legal कर दिया गया, और अब पति या पत्नी में से कोई भी divorce फाइल कर सकते थे।

 तब औरतो को काम के लिए ट्रेनिंग देना भी शुरू कर दिया गया, और अब वह अपना छोटा-मोटा बिज़नेस खोल सकती थी, या फिर आर्टिस्ट भी बन सकती थी। मगर औरतो को पोलिटिकल rights अभी भी नहीं मिले, जैसे वोट देने का अधिकार, आदि। तो इसके लिए उनका struggle जारी रहा। मगर जब आतंक का समय यानी की Maximilien की सरकार बनी, तब इन सभी clubs को बंद करवा दिया गया। साथ ही उन्होंने औरतो को पॉलिटिक्स में आने से ही ban कर दिया।

औरतो के क्लब की leaders को तब arrest कर लिया गया, और फिर उन्हें मार दिया गया। मगर औरतो की वोट की मांग काफी सालों तक ऐसे ही चलती रही, और उन्हें आखिर कार साल 1946 में वोट देने का अधिकार मिल गया।

सरकार के कुछ और काम 

तब सरकार ने कुछ अच्छे भी अच्छे काम किये थे, जैसे की दास और गुलामी प्रथा का अंत, और इससे पूरी तरह से बंद कर दिया गया, और यह फ्रांस की colonies में किया गया, मतलब जिन जगहों पर फ्रांस का कब्ज़ा था। फ्रांस की कॉलोनियां थी Guadeloupe. San Domingo, और Martinique, और यह सभी कैरिबियन रीजन में थे और यहाँ से फ्रांस को तम्बाकू, इंडिगो, कॉफ़ी, चीनी आदि यह सब मिलती थी।

The French revolution : गुलाम प्रथा  

जो यूरोपियन थे, तब वो कैरिबियन में काम नहीं करना चाहते थे, जिस कारण वहां लेबर की भारी कमी हो गयी, जिसकी भरपाई करने के लिए, “Triangular Slave Trade” शुरू हो गयी। और यह ट्रेड तीन जगहों यूरोप, अफ्रीका, और अमेरिका के बिच हुआ करती थी। यह 17th century में शुरू हुई थी, तब फ्रांस के merchants, पानी के रास्ते Bordeaux और Nantes से अफ्रीका जाते थे। फिर वह लोग वहां पहुंचकर वहां के चीफ या मुखिया से मिलते, फिर उनसे बहुत सारे गुलाम खरीदकर, उन्हें अपने जहाजों पर लाद देते, और फिर वे वहां से अमेरिका की तरफ निकल जाते थे।   

तब उन्हें अफ्रीका से अमेरिका के कैरिबियन पहुंचने में लगभग तीन महीने लगते थे, और वहां जाकर वह इन गुलामो को plantation के मालिकों को बेच देते, क्युकी उन्हें गुलामो की काफी जरुरत होती थी, जिनसे वे अपने खेतो में काम करवा सके। और तब उनकी यह जरुरत फ्रांस के मर्चेंट पूरी करते थे, और कैरिबियन से यूरोप की कॉफ़ी, टोबैको, इंडिगो, चीनी, आदि की जरूरते पूरी होती थी। 

मगर 18वी सदी से फ्रांस में इसकी बुराई होती रही, तब फ्रांस की नेशनल असेंबली में इस बात पर चर्चा हुई, की गुलामी अच्छी है या बुरी। Jacobin की सरकार ने इसी बंद करवाने के लिए कोई भी कानून पास नहीं किया, क्युकी तब काफी सारे बिजनेसमैन की कमाई इस गुलामो के ट्रेड से होती थी। 

मगर convention ने साल 1794 में गुलामो को फ्रांस की कॉलोनी में आजाद करने का आदेश दे दिया, और इसके बाद वहां गुलामी बंद हो गयी थी, मगर इसके 10 साल के बाद नपोलीन ने एक बार फिर इससे शुरू करवा दिया। मगर आखिर कार साल 1846 में फ्रांस की कॉलोनियों में गुलामी पूरी तरह से बंद हो गयी।

The French revolution: सेंसरशिप का उन्मूलन

जिन कानूनों ने फ्रांस के लोगो की जिंदगी में बदलाव आये, वे सभी साल 1789 ने बाद ही बने थे, और उनमे से एक था “abolition of censorship”, जिसके तहत तब किताबो, नाटकों, गानों और अखबारों पर censorship लगायी जाती थी। तब 1789 के बाद इससे भी बंद करवा दिया गया, और अब इनमे कुछ भी छापा जा सकता था, जिसे पहले old regime जो की 1789 से पहले के समय को कहा जाता है, राजा से सहमति लेकर ही किया जा सकता था। तो तब censors का काम यह देखना था की, कही कोई कुछ गलत को नहीं छाप रहा, या कही कोई राजा की बुराई नहीं कर रहा।  

लेकिन जब फ्रांस में right to speech and expression को लाया गया, तब फ्रांस के शहर किताबो, पोस्टर्स, आदि से भर गए। इनमे फ्रांस के अंदर जो कुछ हो रहा थे उनके बारे में बताया गया, और अब लोग इन सब के बारे में अपनी राय भी दे सकते थे। साथ ही उस समय नाटक और गीत-संगीत के कार्यक्रम काफी चला करते थे, क्युकी उस समय काफी कम लोग ही पढ़े-लिखे थे, जिस कारण उन्हें सारी बाते इन संगीत और नाटकों के कार्यक्रमों से ही पता चला करते थे। जबकि पढ़े-लिखे लोग राजनीतिक दार्शनिक लोगो की बाते सुना करते थे।

The French revolution : निष्कर्ष 

नेपोलियन बोनापार्ट ने 1804 में खुद को फ्रांस के सम्राट का ताज पहनाया और निजी संपत्ति की सुरक्षा और दशमलव प्रणाली द्वारा प्रदान किए गए वजन और माप की एक समान प्रणाली जैसे कई कानून पेश किए। मगर 1815 में वाटरलू में नेपोलियन की हार हुई। स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक अधिकारों के विचार फ्रांसीसी क्रांति की सबसे महत्वपूर्ण विरासत थे। और उपनिवेशवादी लोगों ने एक संप्रभु राष्ट्र-राज्य बनाने के लिए स्वतंत्रता के विचार पर फिर से काम किया।

FAQ (Frequently Asked Questions)

Republic का मतलब क्या होता है?

यह एक तरह की सिस्टम होती है, जिसमे सरकार और इसके नेता को जनता द्वारा चुना जाता है।

फ्रांस monarch से republic कब बनी?

21 सितम्बर 1792 को फ्रांस में monarch ख़त्म हुई, और यह देश एक republic देश बन गया।

आशा करता हूं कि आज आपलोंगों को कुछ नया सीखने को ज़रूर मिला होगा। अगर आज आपने कुछ नया सीखा तो हमारे बाकी के आर्टिकल्स को भी ज़रूर पढ़ें ताकि आपको ऱोज कुछ न कुछ नया सीखने को मिले, और इस articleको अपने दोस्तों और जान पहचान वालो के साथ ज़रूर share करे जिन्हें इसकी जरूरत हो। धन्यवाद।

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