Nationalism in india summary in hindi

Nationalism in India विषय की जानकारी, कहानी | Nationalism in India summary in hindi

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क्या आप एक दसवी कक्षा के छात्र हो, और आपको NCERT के history ख़िताब के chapter “Nationalism in india” के बारे में सरल भाषा में सारी महत्वपूर्ण जानकारिय प्राप्त करनी है? अगर हा, तो आज आप बिलकुल ही सही जगह पर पहुचे है। 

आज हम यहाँ उन सारे महत्वपूर्ण बिन्दुओ के बारे में जानने वाले जिनका ताल्लुक सीधे 10वी कक्षा के इतिहास के chapter “Nationalism in india” से है, और इन सारी बातों और जानकारियों को प्राप्त कर आप भी हजारो और छात्रों इस chapter में महारत हासिल कर पाओगे।

साथ ही हमारे इन महत्वपूर्ण और point-to-point notes की मदद से आप भी खुदको इतना सक्षम बना पाओगे, की आप इस chapter “Nationalism in india” से आने वाली किसी भी तरह के प्रश्न को खुद से ही आसानी से बनाकर अपने परीक्षा में अच्छे से अच्छे नंबर हासिल कर लोगे।

तो आइये अब हम शुरु करते है “Nationalism in india” पे आधारित यह एक तरह का summary या crash course, जो इस topic पर आपके ज्ञान को बढ़ाने के करेगा आपकी पूरी मदद।

Table of Contents

Nationalism in india का मतलब क्या है?

Nationalism का मतलब अपने देश के प्रति प्यार और गर्व क भावना का होना होता है, जिसे की हम आसान भाषा में देश भक्ति भी कह सकते है। तो हम इस chapter में यही पढने वाले है की, आखिर हमारे देश भारत के लोगो के बिच देश भक्ति कैसे पैदा हुई। 

भारत में ब्रिटिश दौर के दौरान, ब्रिटिश के colonial साम्राज्य से लड़ने के लिए भारतीयों ने काफी बड़ी संख्या में anti-colonial movements किये। और यह movements और nationalism एक दूसरे से काफी ज्यादा जुड़े हुए होते है, क्युकी जब लोग colonial ताकतों से परेशान होते है, तब अलग-अलग community के लोग भी एक साथ आ कर इनके खिलाफ अपनी आवाज उठाते है, जिस कारण उनके बिच एक unity बन जाती है। 

तो हम इस chapter “Nationalism in india” में ऐसे ही कुछ movements के बारे में पढेंगे, और तो और अलग-अलग communities यानि की समुदायों का इन movements में क्या हाथ था और फिर आखिर में हम पढेंगे “collective belongingness” के बारे में, यानि की कैसे इसने लोगों की अलग-अलग भावना जैसे की – रंग, पंथ, जाति धर्म के मतभेदों के बावजूद उन्हें एक साथ बांधे रखा।

Nationalism in india की कैसे हुई शुरुआत?

यह बात है प्रथम विश्व युद्ध (WWI) के समय की, जिसमे ब्रिटेन ने भी हिस्सा लिया था, जिस कारण इसका असर भारत देश पर भी हुआ था। जैसे की –

  • युद्ध में काफी ज्यादा खर्चा होने के कारण ब्रिटेन ने अपने defence के खर्चे को काफी बढ़ा दिया, जिसकी भरपाई भारत जैसे कॉलोनी पर tax को बढाकर पूरा किया गया। यहाँ custom duty को बढ़ा दिया गया, और income tax को लाया गया।
  • युद्ध के समय बाजार में चीजों के दाम लगभग दोगुने हो गए, जिस कारण भारत के आम गरीब लोगो को काफी ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
  • भारत के ग्रामीण इलाको से युद्ध में हिस्सा लेने के लिए नौजवानों को फ़ौज में जबरन भर्ती करवाया जाने लगा, जिस कारण वहां के लोगो में काफी ज्यादा घुस्सा पैदा हो गया।
  • उस वक़्त भारत देश के काफी हिस्सों में फसल की काफी ज्यादा बर्बादी हुई थी, जिस कारण food supply में भरी गिरावट आई थी।
  • तब देश में epidemic यानि की महामारी भी फैल गयी थी। साल 1921 के जनगणना के अनुसार उस वक़्त फसल बर्बादी के कारण हुई भुकमरी और महामारी के कारण देश में लगभग 12-13 मिलियन लोगो की मौत हो गयी थी।

तब लोगो को लगा था की विश्व युद्ध के खत्म होने पर यह सारी परेशानिया भी दूर चली जाएँगी, मगर ऐसा कुछ भी नही हुआ। फिर ऐसा मुश्किल वक़्त में भारत के लोगो के सामने एक नया लीडर आया, जिसने लोगो को protest यानि की विरोध करने एक नया तरीका सिखाया। 

इनका नाम था “मोहनदास करमचंद्र गाँधी”, जिन्होंने लोगो के सामने “सत्याग्रह” का विचार पेश किया। सत्याग्रह एक ऐसा तरीका था, जिसमे लोगो के समूह non-violence यानि की अहिंसा की मदद से सच्चाई के लिए लड़ते थे। तब अपनी विदेशो की यात्रा पूरी करके “महात्मा गाँधी ” जनवरी साल 1915 में साउथ अफ्रीका से भारत पहुचे।

Nationalism in india में महात्मा गाँधी का योगदान?

साउथ अफ्रीका से भारत वापस लौटने के बाद महात्मा गाँधी ने देश में तीन जगहों पर अपना सत्याग्रह movement शुरु किया –

  • साल 1916 में उन्होंने बिहार के “चंपारण” में Plantation सिस्टम के खिलाफ सत्याग्रह किया।
  • साल 1917 में गुजरात के “खेडा” जिले में उन्होंने किसानो के लिए सत्याग्रह किया। और इस सत्याग्रह की मांग थी की किसानो से revenue ना collect किया गए, क्युकी यहाँ किसानो की फसल ख़राब हो गयी थी, और वे ब्रिटिश सरकार को revenue देने की हालत में नही थे। 
  • फिर साल 1918 में उन्होंने गुजरात के “अहमदाबाद” में cotton मिल के कर्मचारियों के साथ मिलकर सत्याग्रह movement किया। 

इन सब के बाद महात्मा गाँधी के पुरे देश में कुछ बड़ा करने का सोचा, जिसके बाद उन्होंने “Rowlatt Act” के खिलाफ सत्याग्रह करने की सोची।

Rowlatt Act क्या था? (What was rowlatt act in hindi)

  • इस Act को साल 1919 में जल्दबाजी में “imperial legislative council” द्वारा पास किया गया था, जबकि इसके सारे भारतीय सदस्य इस Rowlatt Act के खिलाफ थें। 
  • इस Act के तहत ब्रिटिश सरकार के पास किसी भी तरह के political act को दबाने की ताकत आ गयी थी। यानि की जो भी भारतीय ब्रिटिश सरकार के खिलाफ राजनीतिक गतिविधियां कर रहे थे, उन्हें दबाने की ताकत अब ब्रिटिश सरकार के हाथो में आ गयी थी।
  • इस Act के तहत ब्रिटिश सरकार राजनीतिक कैदियों को बिना किसी trail यानि की अदालती मुक़दमे के दो साल तक जेल में रख सकती थी।

Rowlatt Act के खिलाफ महात्मा गाँधी?

6 अप्रैल साल 1919 को महात्मा गाँधी ने एक हरताल के साथ Rowlatt सत्याग्रह की शुरुवात की, इसके बाद कई शहरों में इस Act के खिलाफ रैलीयां निकलने लगी, कर्मचारी हरताल पे चले गए, और दुकाने बंद कर दी गयी। 

इसके चलते ब्रिटिश सरकार द्वारा कई इलाको में “Martial law” लगा दिया गया, और इसकी कमान जनरल “Reginald Dyer” के हाथो में आ गयी। Martial law का मतलब यह होता है की, किसी एक region में सारी ताकत फ़ौज के हाथो में आ जाना, और ऐसा तब किया जाता है, जब पुलिस से वहा की हालत नही संभाली जाती।

जलियांवाला बाग हत्याकांड? (Jallianwala Bagh massacre)

Rowlatt सत्याग्रह चलने के दौरान ही 13 अप्रैल को, अमृतसर में जलियांवाला बाग हत्याकांड हो अंजाम दिया गया। उस दिन एक बड़ी संख्या में लोग जलियांवाला बाग में आए थे, जिसमे कुछ तो ब्रिटिश सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए आए थे, जबकि बाकि लोग वहा लगने वाली बैसाखी का मेला घुमने आए थे। 

वहा मौजूद बहुत से लोग अमृतसर के बाहर से आए हुए थे, जिस कारण उन्हें यह मालूम नही था की वहा martial law लागु हो चूका है। जिसके बाद जनरल Dyer बाघ में अपने सिपाहियों के साथ पंहुचा, और वहा के निकलने के सारे रास्तो को बंद कर दिया। फिर उसने बिना किसी चेतावनी के ही भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दे दिया।

इस कारण वहा मौजूद सैकड़ों लोगो की मौके पर ही मौत हो गयी, और general Dyer के मुताबिक वो सत्याग्रहियों में डर पैदा करना चाहता था। इस खबर के फैलते ही लोगो में आक्रोश फैल गया, और वे सीधे पुलिस से ही भिड़ने लगे और सरकारी भवनों पर हमला करने लगे। इसके बदले में सरकार ने भी लोगो पर रहम नही किया, और उन्हें पकडकर उन पर कोड़े बरशाने लगी, और गांवों पर बम से हमले करवाने लगी।  

Nationalism in india – Rowlatt सत्याग्रह पर हिंसा का असर?

फिर हिंसा को बढ़ता देख महात्मा गाँधी ने इस सत्याग्रह को बंद कर दिया। Rowlatt सत्याग्रह बड़े स्थर पर तो था, मगर इसका ज्यादा असर सिर्फ शहरों पर ही देखा गया। इस कारण महात्मा गाँधी को लगा, अगर हमे कुछ बड़ा movement करना है, तो हमे सारे लोगो को धर्म से ऊपर आकर एक साथ जुड़ना परेगा, चाहे वो हिन्दू हो या मुस्लिम। और ऐसा करने के लिए गाँधी ने “khilafat” issue को उठाने का सोचा।

Khilafat issue क्या था? (What was khilafat issue)

  • प्रथम विश्व युद्ध “ottoman empire” की हार से ख़त्म हुआ था, जिसके बाद यह अफवा फैलने लगी थी की उस पर harsh treaty यानि की कठोर संधि लगायी जाएगी।
  • Ottoman साम्राज्य का सम्राट इस्लामिक दुनिया का हेड था, जिसके की “खलीफा” भी कहा जाता है, ठीक जैसे ईसाइयों के लिए “पोप” होते है। तो खलीफा की ताकत को बचने के लिए, मार्च 1919 में बॉम्बे में “khilafat committee” बनाई गयी थी।
  • यहाँ दो युवा मुस्लिम नेता “मोहम्मद अली” और “सौकत अली” महात्मा गाँधी से इस मुद्दे पर सत्याग्रह करने की बात करने लगे। तो यह गाँधी को हन्दू मुस्लिम को साथ में लाने का एक बहुत अच्छा मौका लगा।
  • फिर महात्मा गाँधी ने सितम्बर साल 1920 को कांग्रेस के कलकत्ता सेशन में leaders को समझाया की हमे “खिलाफत” और “स्वराज” के लिए एक “non-cooperation” movement शुरु करना चाहिए।

Nationalism in india – गाँधी की लिखी किताब?

महात्मा गाँधी ने अपनी किताब “हिन्द स्वराज” साल 1909 में लिखी थी, जिसमे उन्होंने लिखा था की भारत में ब्रिटिश राज खुद भारत के लोगो के सहयोग के कारण ही हुआ है और उनके कारण ही ब्रिटिश राज टिका हुआ है, और अगर भारत के लोगो इनके साथ सहयोग ना करे तो, ब्रिटिश राज ख़त्म हो जायेगा, और एक साल एक अंदर भारत को स्वराज मिल जायेगा। मगर अफ़सोस ऐसा कुछ भी नही हो सका।

Nationalism in india – क्या था असहयोग आंदोलन का मामला?

शुरु में कांग्रेस पार्टी  non-cooperation आंदोलन के खिलाफ थी, क्युकी इस आंदोलन के अंदर council election का बहिष्कार करना भी शामिल था, जो की नवंबर 1920 में होना था, जो की कांग्रेस पार्टी नही चाहती थी।

इसके अलावा कांग्रेस को यह भी लगा की इस movement के कारण काफी हिंसा भी हो सकती है, और इन्ही दो कारणों के चलते कांग्रेस ने तब असहयोग आंदोलन का समर्थन नही किया। लेकिन दिसंबर 1920 में कांग्रेस ने अपने कानपूर सत्र में आख़िरकार असहयोग आंदोलन अपना लिया। 

कैसा था मध्यम वर्ग का समर्थन?

  • असहयोग आंदोलन के समर्थन में हजारो बच्चो ने ब्रिटिश सरकार द्वारा चलाए जाने वाले स्कूल और कॉलेज छोड़ दिए। साथ ही वहा के प्रधानाध्यापकओ और शिक्षकों ने भी अपना इस्तीफा दे दिया। और तो और वकीलों ने भी अपना काम बंद कर दिया।
  • सारे प्रांतों में council elections का बहिष्कार किया गया, सिवाय मद्रास के जहा पर “जस्टिस पार्टी” ने इसमें हिस्सा लिया। यह एक non-Brahmins की पार्टी थी, और उन्हें लगा की council में आने से उन्हें थोरी और ताकत मिलेगी।
  • लोगो ने विदेशी कपड़ो का बहिष्कार किया, और साथ ही शराब के ठेकों के रास्तो को जबरन बंद करने लगे।

विदेशी कपड़ो का बहिष्कार होने पर ब्रिटिश को आर्थिक रूप से भी काफी ज्यादा नुकसान सहना पड़ा, और साल 1921 और 22 के दौरान विदेशी कपड़ो का import यानि की आयात लगभग आधे हो गए। लोगो ने खादी से बने कपडे पहनना शुरु कर दिया था, जो की भारत में ही तैयार किये जाते थे।

हालाँकि शहरी इकलो में कई कारणों के चलने धीमा रहा, जैसे की –

  • खादी विदेशी कपड़ो के मुकाबले ज्यादा महँगी थी, जिस कारण गरीब लोग ज्यादा समय तक विदेशी कपड़ो का बहिष्कार जारी नही रख सके।
  • इस आन्दोलन को सफल बनाने के लिए, छात्रों के पास विकल्प के तौर पर भारतीय institutions का होने काफी जरुरी था, जिसकी तब काफी ज्यादा कमी थी। और इसी कारण से थोरे समत बाद ही छात्र और शिक्षक दोबारा ब्रिटिश institutions में जाने लगे।
  • साथ ही वकीलों ने भी सरकारी कोर्टों में काम करना दोबारा शुरु कर दिया।

कैसा था किसानो का समर्थन?

किसानो के लिए यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कम और तालुकदारो और जमींदारो के खिलाफ ज्यादा था। यह लोग किसको से काफी ज्यादा किराया और तरह-तरह के टैक्स माँगा करते थे। साथ ही कुछ किसानों तक को तो जबरन जमीनों पर काम भी करवाया जाता था। और वो काम उन्हें बिना किसी पैसे के ही करना पड़ता था।   

इन्ही कारणों के चलते किसानों की इस आन्दोलन के जरिए कई तरह की अलग-अलग मांगे थी, जैस की –

  • उनसे वसूले जाने वाले किराये और टैक्स को कम किया जाये।
  • साथ ही किसानों से जबरन मुफ्त में काम करवाना बन हो।
  • जमीनों का सही तरीको से बटवारा किया जाये।
  • तालुकदार और जमींदारों के बेरहम नियमों का सामाजिक बहिष्कार हो।

इसके चलते लोग अब तालुकदार और जमींदारों को बुनियादी सेवाए जैसे की – नाई, धोबी, आदि जैसी सेवाए देना बंद कर दिए। जिस कारण उन्हें काफी ज्यादा कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। साथ ही इस आन्दोलन के दौरान जमीनदारो पर काफी हमले भी होने लगे। लोग बाजारों को लुटने लगे। 

तब अवध में किसानो के नेता “बाबा रामचंद्र” थे, जिन्होंने फिर अक्टूबर 1920 में “जवाहरलाल नेहरु” और कुछ अन्य लोगो के साथ मिलकर “अवध किसान सभा” बनाई।  

कैसा था आदिवासी लोगों का समर्थन?

ज्यादातर आदिवासी अपनी जरूरतों के लिए जंगलो पर ही निर्भर होते थे, मगर ब्रिटिश सरकार के नए forest policy के चलते उनपर कई तरह के प्रतिबंध लग गए थे। जैसे की –

  • अब वे अपनी गाय और भैसों को जंगलो में चराने के लिए नही लेकर जा सकते थे।
  • वे अब जलाने के लिए लकड़िया और फल नही जमा कर पा रहे थे।

आदिवासी लोगो के लिए जंगल को बंद कर दिया गया था, और ब्रिटिश इनसे जबरन काम करवाके खुद के लिए रास्ते बनवाते थे, जिसके बदले में उन्हें कुछ भी नही मिलता था।

फिर अन्द्रप्रदेश के “gudem hills” में आदिवासियों ने ब्रिटिश के खिलाफ gorilla war शुरु कर दिया। Gorilla war का मतलब ऐसा युद्ध जिसमे लोगो का एक छोटा समूह जो की किसी फ़ौज का हिस्सा नही होते है, किसी के खिलाफ लड़ते है। तो “gudem hills” में हुई इस लड़ाई में आदिवासियों को “अल्लूरी सीताराम राजू” का नेतृत्व मिला।

सीताराम राजू  महात्मा गाँधी के बहुत बड़े समर्थक थे और उनके असहयोग आंदोलन से उन्हें काफी प्रेरणा मिली। सीताराम राजू ने लोगो को खादी पहनने और शराब छोड़ने के लिए भी काफी प्रेरित किया। लेकिन दूसरी तरह उनका मानना था की, भारत को आजादी सिर्फ बल पूर्वक ही दिलाई जा सकती है, ना की अहिंसा से।   

Gudem के विद्रोही पुलिस स्टेशन पर हमला करते थे, और ब्रिटिश के अफसरों को मरने की कोशिश करते थे। इन विद्रोही ने स्वराज के लिए अपना युद्ध जारी रखा। लेकिन साल 1924 में सीताराम राजू पकड़ा गया और फिर उन्हें जान से मार दिया गया, जिसके कारण उनका नाम काफी बड़ा बन गया।   

असम के बागानों के मजदूरों का समर्थन?

यह वो मजदुर होते है, जो की असम राज्ये के plantations में काम किया करते है। Plantation का मतलब है, वो बड़ी जगहें जिनपर फसल उगाई जाती है। यह इलाके काफी ज्यादा बड़े होते है, और इनमे कई सारे लोग एक साथ काम करते है, और इन्हें ही plantation workers कहा जाता है। 

इन मजदूरों के लिए स्वतंत्रता का मतलब था, आज़ादी से plantation के अंदर-बाहर आना जाना। और जिस गाँव के वे आए थे, उससे अपना संपर्क बनाये रखना। लेकिन तब ब्रिटिश सरकार के “”inland emigration act 1859” के तहत कोई भी plantation में काम करने वाला मजदुर चाय के बागानों के बाहर नही जा सकता था, और उन्हें बाहर जाने की इजाजत बहुत कम मिलती थी।

जब plantation में काम करने वाले मजदूरों ने non-cooperation आन्दोलन के बारे में सुना, तो वे हजारो की तादाद में plantation को छोडकर अपने-अपने घर की तरह निकल गए। उनसब का मानना था की, अब जल्द ही गाँधी राज आने वाला है और सबको अपने गांवों में जमीने दी जाएँगी।  

Nationalism in india – कैसे हुआ चौरी-चौरा कांड?

असहयोग आंदोलन के दौरान फ़रवरी साल 1922 में गोरखपुर के चौरी-चौरा बाजार में एक आन्दोलन हिंसा में बदल गया, जिसमे की कुछ पुलिस कर्मी मारे गए। फिर इस घटना के बारे में जानने के बाद महात्मा गंधिक ने अपना असहयोग आंदोलन ही वापस ले लिया, और तब उन्होंने कहा की लोग अभी इसके लिए तैयार नही है।  

असहयोग आंदोलन के ख़त्म होने के बाद के हालात?

आन्दोलन के ख़त्म होने के बाद, कांग्रेस के कई नेता जन संघर्ष कर-कर के थक गए थे, इसीलिए वे Provincial Council के चुनाओ मे हिस्सा लेना चाहते थे, जो की “govt of india act 1919” के तहत बनाये गए थे। नेताओ का यह मानना था की, इससे वे council में ब्रिटिश द्वारा बनाये गए नीतियों का विरोध कर पाएंगे और साथ ही उनमे बदलाव के लिए भी लड़ पाएंगे।

“C.R. दास” और “मोतीलाल नेहरू” ने मिलकर 1 जनवरी 1923 को स्वराज पार्टी बनाई, जिससे की वे council politics में वापस जा सके। फिर 1920 के दशक के अंत में दो चीजों ने भारतीय राजनीती को एक नई दिशा दी।

पहली चीज़ थी, दुनिया भर में आई आर्थिक मंदी। साल 1926 में फसलो के दाम काफी ज्यादा गिर गए, खेती के समान और इनकी export गिरने लगी। जिस कारण किसानो को अपनी चीज़े बेचने और अपने खर्चे निकालने में काफी ज्यादा मुश्किलें आने लगी। जिस कारण साल 1930 तक लोग काफी तनाव और भ्रम में आ गए थे।

दूसरी चीज़ थी, “Simon commision” जिसे ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाया गया था, और इसका हेड “Sir John Simon” को बनाया गया था। Commision कुछ लोगो का एक अधिकारिक समूह होता है, जिन्हें सरकार द्वारा किसी चीज़ को नियंत्रण या फिर किसी चीज़ का पता लगाने के लिए बनाया जाता है। तो Simon commision को यह काम दिया गया था, की वो भारत जाये और वहा के संविधान का कामकाज देखे, और इसमें कुछ बदलाव के सुझाव दे। 

मगर इस कमीशन में एक दिक्कत यह थी की, इसमें एक भी भारतीय सदस्य मौजूद नही था, और इसमें सिर्फ ब्रिटिश लोग शामिल थे। तो जब simon commission साल 1928 में भारत पंहुचा, तो लोगो ने इसका जम कर विरोध किया और “go back simon” का नारा दिया। सारी भारतीय राजनीतिक पार्टी इसके खिलाफ एक जुट हो गयी। इसके चलते viceroy “lord Irwin” ने भारतीयों को लुभाने वाले कई प्रस्ताव दिए, जिससे की देश में राष्ट्रवादी आन्दोलन ख़त्म हो जाये। मगर कांग्रेस के लीडर इससे खुस नही हुए, और ब्रिटिश सरकार से देश की स्वतंत्रता की मांग करने लगे।

दिसंबर साल 1929 में जवाहरलाल नेहरु की presidency में लाहौर में हुए कांग्रेस के सत्र में पूर्ण स्वराज की मांग की गयी, और फिर 26 जनवरी, 1930 को स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। जिसमे लोगो ने पूर्ण स्वराज की लड़ाई के लिए प्रतिज्ञा ली, मगर इसपर ब्रिटिश सरकार द्वारा कुछ ज्यादा ध्यान नही दिया गया।

Nationalism in india – दांडी मार्च / Salt march क्यों हुआ?

महात्मा गाँधी ने 31 जनवरी, 1930 में viceroy “lord Irwin” को एक चिट्ठी लिखी, जिसमे उन्होंने अपनी 11 मांगे रखी थी। इस चिट्टी में सबसे महत्वपूर्ण मांग थी, “salt tax” यानि की नमक पर लगने वाले टैक्स को ख़त्म करना। अपनी चिट्टी में गाँधी ने lord Irwin को अंतिम चेतावनी दे दी थी, की अगर 11 मार्च तक उनकी मांगे पूरी नही हुई तो, civil disobedience आन्दोलन शुरु कर देंगे। 

फिर ऐसा ही हुआ, गाँधी की मांगे पूरी नही हुई, फिर महात्मा गाँधी ने शुरु किया “Salt मार्च” –

  • महात्मा गाँधी ने Salt मार्च अपने 78 विश्वसनीय स्वयंसेवकों के साथ शुरु किया था। 
  • यह यात्रा लगभग 240 मील की थी, गाँधी के अहमदाबाद में मौजूद साबरमती आश्रम से शुरु हुई थी, और ख़त्म तटीय गाँव “दांडी” में ख़त्म हुई, इसीलिए इसे “दांडी मार्च” के नाम से भी जाना जाता है।
  • इन्हें अपनी मंजिल तक पहुचने में 24 दिन का समय लगा।
  • अपनी मार्च के दौरान महात्मा गाँधी जहा भी जाते, वहा हजारो लोग उन्हें सुनने के लिए जमा हो जाते थे, तब गाँधी वहा लोगो को बताते थे की उनका स्वराज से क्या मतलब है, और फिर वो लोगो को शांतिपूर्वक ब्रिटिश सरकार की बातों को ना मानने की हिदायत देते थे।
  • गाँधी 6 अप्रैल, 1930 को दांडी पहुचे, और वहा पानी को उबालकर नमक बनाया, यानि की उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाये कानून को तोड़ दिया। और इस Salt मार्च से ही civil disobedience आन्दोलन की शुरुवात हुई।   

Civil disobedience आन्दोलन, असहयोग आंदोलन से कैसे अलग था?

  • असहयोग आंदोलन में लोगो को सिर्फ ब्रिटिश सरकार का किसी भी चीज़ में सहयोग करने से मन किया गया था, लेकिन Civil disobedience आन्दोलन में colonial laws को तोड़ने के लिए कहा गया था। 
  • देश के अलग-अलग हिस्सों में हजारो लोगो ने नामक बनाकर ब्रिटिश द्वारा बनाये गए कानून को तोड़ा, और सरकारी नामक के कारखानों के सामने प्रदर्शन किये।
  • जैसे ही यह आन्दोलन में तेजी आई, लोगो ने विदेशी कपड़ो को भी boycott करना शुरु कर दिया, और शराब की दुकानों के रास्तो को बंद करने लगे।
  • किशानो ने राजस्व और “chaukidari tax” देना बंद कर दिया।
  • जंगल के पास रहने वाले आदिवासी लोगों ने, जंगल के नियमों को भी तोड़ दिया और आरक्षित जंगलों में घुसकर लकड़िया काटने लगे और अपने पशूओ को वहा चराने लगे।

Civil disobedience आन्दोलन पर ब्रिटिश सरकार का जवाब?

इस आन्दोलन के बढ़ने पर ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस के नेताओ को गिरफ्तार करना शुरु कर दिया। जिनमे कई बड़े नाम भी शामिल थे, जैसे की महात्मा गाँधी, अब्दुल गफ्फार खान, आदि। इससे लोग और भी ज्यादा उग्र हो गए, और पुलिस चौकी, नगर पालिका भवन, कोर्ट, रेलवे स्टेशनों, आदि पर हमले करने लगे। 

मगर ब्रिटिश सरकार ने भी अपने कदम पीछे नही किये, और सत्याग्रहियों पर हमले करवाने लगे, और तो और बच्चो को भी मारने लगे। लगभग एक लाख लोगों को उस वक़्त गिरफ्तार किया गया, और ऐसे हालत बनता देख, महात्मा गाँधी ने एक बार फिर अपना यह आन्दोलन बंद कर दिया। इस आन्दोलन की शुरुवात की गयी थी मार्च 1930 में, और इसका मार्च 1931 आते-आते इस आन्दोलन का अंत हो गया। 

मगर साल 1932 में Civil disobedience आन्दोलन को एक बार फिर से शुरु किया गया। मगर एक बार फिर साल 1934 के आते-आते इस आन्दोलन ने अपना दम तोड़ दिया। 

Civil disobedience आन्दोलन में हिस्सा लेने वाले सामाजिक समूह?

अमीर किसान
  • देश के देहाती इकलो में अमीर किसानों के संगठनों ने जैसे की गुजरात के “patidars” और उत्तर प्रदेश के “jats” ने इस आन्दोलन में जोरदार हिस्सा लिया।
  • यह लोग व्यावसायिक फसलो के उत्पादक थे, जिस कारण व्यापार में आई मंदी और फसलो के गिरते दाम से इन्हें भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा था।
  • इनके लिए सरकार को राजस्व और टैक्स देना असंभव सा हो गया था, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने टैक्स कम करने से मन कर दिया था। और जिस कारण उनमे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ काफी ज्यादा आक्रोश पैदा हो गया। 
  • जिस कारण इन किसान संगठनों ने खूब जम कर इस Civil disobedience आन्दोलन में हिस्सा लिया था। साथ ही उन्होंने तब अलग-अलग boycott कार्यक्रमों में भी हिस्सा लिया, और सरकार को टैक्स देना छोड़ दिया।
  • इनके लिए स्वराज की लड़ाई इनके द्वारा दिए जाने वाले उच्चे टैक्स और राजस्व के खिलाफ थी। मगर इन संगठनों को झटका तब लगा, जब 1931 में टैक्स और राजस्व की दरें कम किये बिना ही यह आन्दोलन बंद हो गया।
  • जिस कारण जब साल 1932 में यह आन्दोलन दोबारा से शुरु हुआ, तब इन अमीर किसान संगठनों ने इसमें हिस्सा लेने से मना कर दिया।
गरीब किसान
  • गरीब किसान बड़े जमींदारो की जमीनों पर खेती करते थे, और इसके बदले उन्हें किराया देते थे। मगर बाजार में आई आर्थिक मंदी के कारण उनके लिए जमींदारो को किराया देना काफी ज्यादा मुश्किल हो गया। 
  • जिस कारण इस आन्दोलन में उनकी मांग थी की, जमींदार उनका किराया माफ़ कर दे। मगर कांग्रेस ने इस मुद्दे को ज्यादा सपोर्ट ही नही किया, क्युकी वे अपने सम्बन्ध अमीर किसानो और जमींदारो के साथ ख़राब नही करना चाहते थे। 
व्यापार वर्ग
  • व्यापारी अपना व्यापार बढ़ाना चाहते थे, और वे उन colonial कानूनों को ख़त्म करवाना चाहते थे, जो इनके व्यापार को बड़ा बनाने में दिक्कतें पैदा के रही थी।
  • साथ ही वे बाहर से लाये जाने वाले विदेशी सामानों से सुरक्षा चाहते थे, और यह आयात को कम करवाना चाहते थे। क्युकी अगर भारतीय बाजारों में विदेशी सामान ज्यादा आयेंगे, तो उनके सामानों का बिकना मुश्किल हो जायेगा।
  • व्यापर हित को व्यवस्थित करने के लिए, साल 1920 में “Indian industrial and commercial congress” और साल 1927 में “Indian chamber of commerce and industries” (FICCI) को बनाया गया। और “G.D. Birla” और “Purushottam das” जैसे बड़े-बड़े उद्योगपतियों ने इन व्यापार वर्गो का नेतृत्व किया।
  • व्यापारियों ने Civil disobedience आन्दोलन का समर्थन किया, और इस आन्दोलन को वित्तीय सहायता दी। साथ ही उन्होंने विदेशी सामानों की खरीद और बिक्री भी बंद कर दी। 
  • सारे व्यापारियों के लिए स्वराज का मतलब था एक ऐसा समय जब उनके व्यापार पर किसी भी तरह के औपनिवेशिक प्रतिबंध नही होंगे, और उनके व्यापार और उद्योग बिना किसी रुकावट के तेजी के साथ फैल सकेंगी। 
औद्योगिक मजदूर वर्ग
  • मजदूर वर्ग ने इस आन्दोलन में कुछ ज्यादा खास हिस्सा नही लिया, सिवाय नागपुर क्षेत्र के।
  • जन्होने इस आन्दोलन में हिस्सा लिए, उन्होंने गाँधी के विचारों को अपनाया जैसे की विदेशी कपड़ो का बहिष्कार करना।
  • इनका आन्दोलन अपने कम वेतन और उनके काम करने वाली जगहों की ख़राब हालत साथ ही उनके रहने वाली जगहों के ख़राब स्थिति के लिए था।
  • साल 1930 में रेलवे कर्मचारियों ने और साल 1932 में बंदरगाह के मजदूरों ने हरताल कर दी थी।
  • साथ ही साल 1930 में छोटा नागपुर में टिन की खदानों के हजारो मजदूरों ने गाँधी टोपी पहनकर विरोध रेली और boycott कार्यक्रमों में जमकर हिस्सा लिया। 

मगर कांग्रेस मजदूरों की मांगो को अपने आन्दोलन का हिस्सा नही बनाना चाहती थी, क्युकी इससे बड़े-बड़े उद्योगपति उनसे नाराज हो जाते। 

आन्दोलन में महिलाओं की भूमिका?

  • औरतों ने भारी संख्या में इस Civil disobedience आन्दोलन में हिस्सा लिया।
  • इस आन्दोलन के दौरान हजारों औरते घर से बाहर निकलकर गाँधी के भाषण सुनने जाती थी।
  • औरतों ने विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया, साथ ही नमक बनाया और विदेशी कपड़ो का बहिष्कार भी किया।
  • इस दौरान बहुत सारी औरतों को पुलिस ने जेल में दाल दिया।
  • औरतें देश सेवा को अपना कर्तव्य समझने लगी।   

Civil disobedience आन्दोलन की सीमाएं?

  • लम्बे समय से कांग्रेस दलित और दबे हुए वर्गो को नज़रअंदाज़ कर रही थी, ताकि रूढ़िवादी उच्च जाति के हिंदू उनसे घुस्सा ना जा जाए। इसी कारण से इस आन्दोलन में दलित लोगों का योगदान काफी कम था।
  • 1920 के दशक के मध्य में कांग्रेस हिंदू धार्मिक राष्ट्रवादी समूह जैसे की “हिन्दू महासभा” के साथ संबद्ध बनाने लगी थी, जिस कारण मुस्लिम लोग खुद को थोरा अलग-अलग बोध करने लगे।
  • मुस्लिम नेता जैसे “मोहम्मद अली जिन्नाह” मुसलमानों के लिए केंद्रीय सभा में आरक्षित सीटो की मांग करने लगे, पर इन मांगो को नही माना गया। इसीलिए जब Civil disobedience आन्दोलन शुरु हुआ तो इसमें मुसलमानों ने कुछ खास भाग नही लिया।   
  • साथ ही जब राजस्व और टैक्स की दरे बिना कम हुए साल 1931 में यह आन्दोलन बंद हो गया, तब किसानो को काफी नुकसान हुआ। जिस कारण जब साल 1932 में इस आन्दोलन को दोबारा शुरु किया गया, तब अमीर किसानो ने इसमें भाग लेने से मना कर दिया।
  • मजदूर वर्ग ने इस आन्दोलन में कुछ ज्यादा खास हिस्सा नही लिया, सिवाय नागपुर क्षेत्र के। और यह इसलिए हुआ क्युकी कांग्रेस बड़े-बड़े उद्योगपतियों को सपोर्ट करती थी, क्युकी वही बड़े उद्योगपति इस आन्दोलन में वित्तीय सहायता प्रदान करते थे।

Nationalism in india – Poona pact क्या था?

  • डॉ “बी आर अम्बेडकर” ने साल 1932 में “depressed classes association” बनाई, और दलितों के लिए अलग electorates यानि की निर्वाचक मंडल की मांग करने लगे।
  • जब ब्रिटिश सरकार ने अम्बेडकर की यह मांग मान ली, तब महात्मा गाँधी ने मृत्यु आने तक अपना भूख हरताल शुरु कर दिया।  
  • तब गाँधी का मानना था की दलितों के लिए अलग electorates होने से समाज की एकता कम हो जाएगी।
  • तब अम्बेडकर को महात्मा गाँधी की बात माननी पड़ी, और उसी का परिणाम था सितम्बर साल 1932 में हुआ “पूना पैक्ट”।
  • इससे दबे हुए वर्गो को केंद्रीय और प्रांतीय legislative में आरक्षित सिट मिलती, पर उनकी वोटिंग सामान्य electorates में ही होंगी।

सामूहिक अपनेपन की भावना (the sense of collective belonging) 

अब हम जानते है, Nationalism in india के वैसे कुछ महत्वपूर्ण factors जिसने देश के लोगो मे राष्ट्रवाद की भावना को जगाया –

संयुक्त संघर्ष (united struggle)

जो सबसे महत्वपूर्ण factor था, जिसने देश के लोगो मे राष्ट्रवाद की भावना को जगाया, वो था उनका संयुक्त संघर्ष, क्युकी जब सब लोग साथ आकर किसी चीज़ के लिए लड़ेंगे तब उनमे देश भक्ति भी बढ़ेगी।  

सांस्कृतिक प्रक्रिया (cultural process) 

सांस्कृतिक चीजों ने लोगो की सोच में राष्ट्रवाद को डाला। इतिहास, गीत, लोकगीत, प्रिंट और प्रतिको ने लोगो में राष्ट्रवाद की सोच को बढ़ाने में काफी ज्यादा मदद की।

भारत माता (Bharat mata)

भारत की पहचान को लोग “भारत माता” की छवि से जोड़कर देखने लगे, जिसे की भारतीय उपन्यासकार “बंकिम चंद्र चटर्जी” ने साल 1880 में बनाई थी, और साथ ही उन्होंने “वन्दे मातरम” भी लिखा था। 

लोककथाएं (folklores)

देशों और समुदायों की कहानियां और परम्पराओं को folklores कहा जाता है। और राष्ट्रवाद इन लोककथाओं को पुनर्जीवित करके भी काफी आगे बढ़ा। तो 19वीं सदी के अंत में राष्ट्रवादी लोग जगह-जगह घुमे, बहुत सारे गाने और कहानियों को रिकॉर्ड करके संभाला गया और उन्हें सभी के साथ बांटा गया।

इतिहास की पुनर्व्याख्या (reinterpretation of history)

जो मुख्य चीज़ थी, जिससे लोगो में राष्ट्रवाद की भावना आई वो थी, अपने देश के इतिहास की पुनर्व्याख्या। तब देश के सुनहरा इतिहास सुनकर लोगो को काफी अच्छा लगा, और उनमे अपने देश के प्रति राष्ट्रवाद की भावना उत्पन हुई।     

FAQ (Frequently Asked Questions)

दसवी क्लास के “Nationalism in India” में क्या बताया गया है?

कक्षा 10 के Nationalism in india अध्याय में, इसे उस भावना के रूप में वर्णित किया गया है, जब किसी एक देश के लोग खुद में सामान्य belonging की भावना विकसित करते हैं, और एक सामान्य सूत्र में सच्चाई के लिए एकजुट होते हैं। साथ ही उनके संघर्ष उन्हें एकजुट करते हैं, और कैसे उनकी एक आम पहचान बनती हैं।

महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से भारत कब लौटे थे?

महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से भारत 9 जनवरी, साल 1915 से लौटे।

महात्मा गाँधी ने अपनी पहली किताब कब लिखी?

महात्मा गाँधी ने अपनी पहली कताब “हिन्द स्वराज” साल 1908 में जहाज द्वारा लंदन के रास्ते भारत से दक्षिण अफ्रीका की अपनी वापसी यात्रा के दौरान लिखी थी।

कांग्रेस का 1927 का सत्र कहा पर हुआ था?

कांग्रेस का 1927 का सत्र “मद्रास” में हुआ था।

Poona pact कब sign हुआ था?

पूना पैक्ट सितम्बर साल 1932 में sign हुआ था। 

महात्मा गाँधी अछूतों को क्या बोलते थे?

गाँधी उन्हें “हरिजन” यानि की भगवान के बच्चे कहा करते थे।

आशा करता हूं कि आज आपलोंगों को कुछ नया सीखने को ज़रूर मिला होगा। अगर आज आपने कुछ नया सीखा तो हमारे बाकी के आर्टिकल्स को भी ज़रूर पढ़ें ताकि आपको ऱोज कुछ न कुछ नया सीखने को मिले, और इस articleको अपने दोस्तों और जान पहचान वालो के साथ ज़रूर share करे जिन्हें इसकी जरूरत हो। धन्यवाद।  

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