Forest and Wildlife Resources summary in hindi

Forest and Wildlife Resources विषय की जानकारी, कहानी | Forest and Wildlife Resources summary in hindi

पोस्ट को share करें-

Forest and Wildlife Resources notes in hindi, Geography में Forest and Wildlife Resources की जानकारी, geography class 10 Forest and Wildlife Resources in hindi, geography के चैप्टर Forest and Wildlife Resources की जानकारी, class 10 geography notes, NCERT explanation in hindi, Forest and Wildlife Resources explanation in hindi, Geography में वन और वन्यजीव संसाधन के notes.

क्या आप एक दसवी कक्षा के छात्र हो, और आपको NCERT के geography ख़िताब के chapter “Forest and Wildlife Resources” के बारे में सरल भाषा में सारी महत्वपूर्ण जानकारिय प्राप्त करनी है? अगर हा, तो आज आप बिलकुल ही सही जगह पर पहुचे है। 

आज हम यहाँ उन सारे महत्वपूर्ण बिन्दुओ के बारे में जानने वाले जिनका ताल्लुक सीधे 10वी कक्षा के भूगोल के chapter “Forest and Wildlife Resources” से है, और इन सारी बातों और जानकारियों को प्राप्त कर आप भी हजारो और छात्रों इस chapter में महारत हासिल कर पाओगे।

साथ ही हमारे इन महत्वपूर्ण और point-to-point notes की मदद से आप भी खुदको इतना सक्षम बना पाओगे, की आप इस chapter “Forest and Wildlife Resources” से आने वाली किसी भी तरह के प्रश्न को खुद से ही आसानी से बनाकर अपने परीक्षा में अच्छे से अच्छे नंबर हासिल कर लोगे।

तो आइये अब हम शुरु करते है “Forest and Wildlife Resources” पे आधारित यह एक तरह का summary या crash course, जो इस topic पर आपके ज्ञान को बढ़ाने के करेगा आपकी पूरी मदद।

Forest and Wildlife Resources का मतलब क्या है?

हम मनुष्य सभी जीवित जीवों के साथ एक पारिस्थितिक तंत्र का एक जटिल जाल बनाते हैं। इस अध्याय “Forest and Wildlife Resources” में हम उस महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा की गई है, जो वन पारिस्थितिक तंत्र के बारे में हमे बताएँगे साथ ही हम भारत में वन और वन्य जीवन का संरक्षण कैसे कर सकते हैं, इसमें उसके बारे  जानेंगे। और हमारे वन और वन्यजीव संसाधनों के संरक्षण के लिए लोगों द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों की व्याख्या करते हुए यह अध्याय समाप्त होता है।

भारत में वनस्पति और जीव (Flora and Fauna in India)

जैव विविधता की विशाल श्रृंखला के मामले में भारत दुनिया के सबसे अमीर देशों में से एक है। भारत में विभिन्न प्रकार के वन और वन्यजीव संसाधन पाए जाते हैं। प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN) के आधार पर, हम मौजूदा पौधों और जानवरों की प्रजातियों की विभिन्न श्रेणियों को निचे दिए गए वर्ग के हिसाब से वर्गीकृत कर सकते हैं –

  • सामान्य प्रजातियाँ (Normal Species) – ऐसी प्रजातियाँ जिनकी जनसंख्या का स्तर उनके जीवित रहने के लिए सामान्य माना जाता है, जैसे की – मवेशी, साल, देवदार, कृंतक आदि।
  • लुप्तप्राय प्रजातियाँ (Endangered Species) – इन प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा रहता है। उदाहरण के लिए – काला हिरन, मगरमच्छ, भारतीय जंगली गधा, भारतीय गैंडा, संगाई (मणिपुर में भौंह हिरण) आदि।
  • सुभेद्य प्रजातियाँ (Vulnerable Species) – ये ऐसी प्रजातियाँ हैं, जिनकी जनसंख्या में इस स्तर तक गिरावट आई है, कि निकट भविष्य में इसके भी लुप्तप्राय श्रेणी में जाने की संभावना हो। जैसे की – नीली भेड़, एशियाई हाथी, गंगा डॉल्फिन, आदि।
  • दुर्लभ प्रजातियां (Rare Species) – छोटी आबादी वाली प्रजातियां लुप्तप्राय या कमजोर श्रेणी में आ सकती हैं, यदि उन्हें प्रभावित करने वाले नकारात्मक कारक काम करना जारी रखते हैं। ऐसी प्रजातियों के उदाहरण है – हिमालयी भूरे भालू, जंगली एशियाई भैंस, रेगिस्तानी लोमड़ी, हॉर्नबिल आदि हैं।
  • स्थानिक प्रजातियाँ (Endemic Species) – ये ऐसी प्रजातियाँ होती हैं, जो केवल कुछ विशेष क्षेत्रों में ही पाई जाती हैं, जो आमतौर पर प्राकृतिक या भौगोलिक बाधाओं से अलग होती हैं। ऐसी प्रजातियों के उदाहरण है – अंडमान चैती, निकोबार कबूतर, अंडमान जंगली सुअर, अरुणाचल प्रदेश में मिथुन, आदि।
  • विलुप्त प्रजातियाँ (Extinct Species) – ये प्रजातियाँ किसी स्थानीय क्षेत्र, देश, महाद्वीप या पूरी पृथ्वी से विलुप्त हो सकती हैं। जैसे की – एशियाई चीता, गुलाबी सिर वाली बत्तख, आदि।

वे कौन से नकारात्मक कारण हैं जो वनस्पतियों और जीवों के ऐसे भयानक ह्रास का कारण बनते हैं?

इसके कई कारण है, जैसे की – 

  • लकड़ी, छाल, पत्ते, रबड़, दवाएं, रंग, भोजन, ईंधन, चारा, खाद, आदि मानवीय जरूरतों को पूरा करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों की अत्यधिक खपत करना।
  • रेलवे, कृषि, कमर्शियल और वैज्ञानिक forestry और खनन गतिविधियों का विस्तार।
  • परियोजनाओं और खनन गतिविधियों का बड़े पैमाने पर विकास।
  • असमान पहुंच, संसाधनों की असमान खपत करना।  आदि।

भारत में वन और वन्य जीवन का संरक्षण (Conservation of Forest and Wildlife)

संरक्षण ecological diversity को संरक्षित करता है, और साथ ही यह पौधों और जानवरों की genetic diversity को भी संरक्षित करता है।

  • भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 को, जंगली आवासों की रक्षा के लिए लागू किया गया था और इसमें संरक्षित प्रजातियों की एक अखिल भारतीय भी सूची प्रकाशित की गई थी।
  • केंद्र सरकार ने विशिष्ट जानवरों की सुरक्षा के लिए कई परियोजनाओं की भी घोषणा की। 
  • साल 1980 और 1986 के वन्यजीव अधिनियम के तहत संरक्षित प्रजातियों की सूची में कई सौ तितलियों, पतंगों, भृंगों और एक ड्रैगनफ्लाई को जोड़ा गया है।
  • साल 1991 में, पहली बार पौधों को भी इस सूची में जोड़ा गया, जिसकी शुरुआत छह प्रजातियों से हुई।

वन और वन्यजीव संसाधनों के प्रकार और वितरण

भारत में, वन विभाग या अन्य सरकारी विभागों के माध्यम से वन और वन्यजीव संसाधनों का स्वामित्व और प्रबंधन सरकार द्वारा किया जाता है। और इन्हें निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है –

  • आरक्षित वन (Reserved Forests) : भारत में कुल वन भूमि के आधे से अधिक को आरक्षित वन घोषित किया गया है।
  • संरक्षित वन (Protected Forests) : वन विभाग ने कुल वन क्षेत्र के एक तिहाई (1/3) हिस्से को संरक्षित वन घोषित किया है।
  • अवर्गीकृत वन (Unclassed Forests) : ये वे वन और बंजर भूमि हैं, जो सरकारी और निजी व्यक्तियों और समुदायों दोनों से ही संबंधित हैं। उत्तर-पूर्वी राज्यों और गुजरात के कुछ हिस्सों में अवर्गीकृत वनों के रूप में उनके वनों का प्रतिशत बहुत अधिक है।

संरक्षित वनों को स्थायी वन भी कहा जाता है, जिन्हें लकड़ी और अन्य वन उपज के उत्पादन के उद्देश्य से और साथ ही कई सुरक्षात्मक कारणों से बनाए रखा जाता है। और भारत के मध्य प्रदेश में स्थायी वनों के अंतर्गत आने वाला सबसे बड़ा क्षेत्र मौजूद है।

समुदाय और संरक्षण (Community and Conservation)

वन और वन्यजीव संसाधनों का संरक्षण बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। और इसके लिए आम लोगों द्वारा उठाए गए कुछ कदमों के बारे में जानकारी निचे दी गयी है –

  • राजस्थान के “सरिस्का टाइगर रिजर्व” में ग्रामीणों ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम का हवाला देकर खनन के खिलाफ लड़ाई लड़ी है।
  • राजस्थान के अलवर जिले के पांच गांवों के निवासियों ने 1,200 हेक्टेयर जंगल को भैरोदेव डाकव ‘सोनचुरी’ घोषित किया है। 
  • यहाँ गाँव अपने स्वयं के नियमों और विनियमों के साथ आए जो किसी को यहाँ शिकार की अनुमति नहीं देते हैं। साथ ही वे किसी भी बाहरी अतिक्रमण से वन्यजीवों की रक्षा भी कर रहे हैं।
  • हिमालय में प्रसिद्ध “चिपको आंदोलन” कई क्षेत्रों में वनों की कटाई का विरोध करने का एक सफल प्रयास था। और इस आंदोलन के परिणामस्वरूप कई जगह सामुदायिक वनीकरण (community afforestation) भी हुआ है।
  • टिहरी और नवदन्या में बीज बचाओ आंदोलन जैसे किसानों और नागरिक समूहों ने दिखाया है कि synthetic रसायनों के उपयोग के बिना भी विविध फसल उत्पादन के पर्याप्त स्तर संभव और आर्थिक रूप से व्यवहार्य हैं।
  • साथ ही भारत संयुक्त वन प्रबंधन (JFM) कार्यक्रम स्थानीय समुदायों को प्रबंधन और खराब हुए वनों की बहाली में शामिल करने के लिए एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करता है।

FAQ (Frequently Asked Questions)

वनों की कटाई के नुकसान क्या हैं?

इसके कई प्रकार के नुकसान होते है, जैसे की –
1. जलवायु असंतुलन। 
2. ग्लोबल वार्मिंग। 
3. वन्यजीव विलुप्त होना।
4. महासागर का acidic होना।    आदि।

‘स्थलाकृति’ (Topography) का क्या अर्थ है?

यह भूमि सतहों के रूपों और विशेषताओं का अध्ययन होता है।

पृथ्वी पर कौन-कौन से प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध हैं?

यहाँ तेल, कोयला, प्राकृतिक गैस, धातु, पत्थर और रेत जैसे कई प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं। इसके अलावा अन्य प्राकृतिक संसाधन जैसे की हवा, धूप, मिट्टी और पानी भी यहाँ पर उपलब्ध हैं। और पशु, पक्षी, मछली और पौधे भी प्राकृतिक संसाधन के अंतर्गत ही आते हैं।

आशा करता हूं कि आज आपलोंगों को कुछ नया सीखने को ज़रूर मिला होगा। अगर आज आपने कुछ नया सीखा तो हमारे बाकी के आर्टिकल्स को भी ज़रूर पढ़ें ताकि आपको ऱोज कुछ न कुछ नया सीखने को मिले, और इस articleको अपने दोस्तों और जान पहचान वालो के साथ ज़रूर share करे जिन्हें इसकी जरूरत हो। धन्यवाद।

Also read –

Resources and development summary in hindi

Nationalism in India summary in hindi


पोस्ट को share करें-

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *