Resources and development विषय की जानकारी, कहानी | Resources and development summary in hindi
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क्या आप एक दसवी कक्षा के छात्र हो, और आपको NCERT के geography ख़िताब के chapter “Resources and development” के बारे में सरल भाषा में सारी महत्वपूर्ण जानकारिय प्राप्त करनी है? अगर हा, तो आज आप बिलकुल ही सही जगह पर पहुचे है।
आज हम यहाँ उन सारे महत्वपूर्ण बिन्दुओ के बारे में जानने वाले जिनका ताल्लुक सीधे 10वी कक्षा के भूगोल के chapter “Resources and development” से है, और इन सारी बातों और जानकारियों को प्राप्त कर आप भी हजारो और छात्रों इस chapter में महारत हासिल कर पाओगे।
साथ ही हमारे इन महत्वपूर्ण और point-to-point notes की मदद से आप भी खुदको इतना सक्षम बना पाओगे, की आप इस chapter “Resources and development” से आने वाली किसी भी तरह के प्रश्न को खुद से ही आसानी से बनाकर अपने परीक्षा में अच्छे से अच्छे नंबर हासिल कर लोगे।
तो आइये अब हम शुरु करते है “Resources and development” पे आधारित यह एक तरह का summary या crash course, जो इस topic पर आपके ज्ञान को बढ़ाने के करेगा आपकी पूरी मदद।
Table of Contents
Resources and development का मतलब क्या है?
Resources वो चीज़े होती है, जो की हमारे कुछ काम में आती है, जैसे की सड़के, लोग, सूरज, तेल, आदि। अगर इससे और अच्छे से समझे तो, resources हमारे पर्यावरण में मौजूद वो हर चीज है, जिसका उपयोग हमारी जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जा सकता है, बशर्ते वे तकनीकी रूप से सुलभ, आर्थिक रूप से व्यवहार्य और सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य हों।
इसके अलावा development का मतलब है की, इन अपने आस-पास मौजूद इन resources को अपने इस्तेमाल लायक करने में कैसे develop यानि की विकसित करना चाहिए। Resources को अलग-अलग groups में बंटा गया है, जैसे की –
उत्पत्ति के आधार पर (On the basis of origin)
जैविक (Biotic) – यह वैसे resources होते है, जो की जिन्दा होते है, यानि की यह जीवित चीजों में आते है। उदहारण के लिए – इंसान,वनस्पति, मत्स्य, पशु, आदि।
अजैविक (Abiotic) – यह वैसे resources होते है, जो की जिन्दा नही होते है, यानि की यह निर्जीव चीजें में आते है। उदहारण के लिए – पत्थर, खनिज पदार्थ, आदि।
उनके ख़त्म होने के आधार पर (On the basis of exhaustibility)
Renewable resources – यह वैसे संसाधन होते है, जो कभी भी ख़त्म नही होते, और दुबारा बनते रहते है। उदहारण के लिए – सूर्य से प्राप्त ऊर्जा, हवा से प्राप्त ऊर्जा, पानी से बनी ऊर्जा, आदि।
Non -renewable resources – यह वैसे संसाधन होते है, जो कभी ना कभी ख़त्म हो जायेंगे। उदहारण के लिए कोयले से बनी ऊर्जा, जीवाश्म से बना ईंधन जैसे की पेट्रोल, डीजल, आदि।
विकास के आधार पर (On the basis of development)
Potential resources – यह वैसे संसाधन होते है, जो हमे मिल तो गए है, मगर अभी हम इनका इस्तेमाल नही करते है। ऐसा इसलिए है, क्युकी अभी इन्हें इस्तेमाल करना बहुत ज्यादा महंगा परेगा। जैसे की अभी हम गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों से काफी बड़ी मात्र में सूर्य और हवा से बजली प्राप्त कर सकते है, मगर ऐसा करने की टेक्नोलॉजी में अभी करोड़ो का खर्च आएगा। जिस कारण हम अभी भी अपनी ज्यादातर बिजली कोयला जलाकर ही प्राप्त करते है, क्युकी वो हमारे लिए सस्ता है।
Developed resources – यह वो संसाधन है, जिसका अभी हम अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल कर रहे है। और हमे यह मालूम है की, इनका सही तरके से इस्तेमाल कैसे किया जाना चाहिए। जैसे की – कोयला,लकड़ी, आदि।
Stock resources – यह संसाधनों का वो समूह है, जो हमारे काफी काम में आ सकती है, मगर हमे अभी इनका सही तरीके से इस्तेमाल करना आता ही नही है। जैसे हमे यह मालूम है की पानी का formula होता है – H2O, मगर हमे अभी तक यह सही से पता नही चल पाया है की इसे hydrogen और oxygen में अलग-अलग कैसे बदला जाये।
Reserves – यह वैसे संसाधन होते है, जिनका इस्तेमाल करने का हमे आता है, मगर हम इन्हें भविष्य के लिए बचा रहे होते है। जैसे की आज भारतीय सेना के पास काफी मात्रा में तेल मौजूद है, मगर आने वाले किसी युद्ध के हालात के मद्दे-नजर जब तेल की आपूर्ति भी बंद हो सकती है, वे अपने पास मौजूद इस तेल को बचाकर रखते है, ताकि जरुरत के वे इनका इस्तेमाल कर सके।
स्वामित्व के आधार पर (On the basis of ownership)
Individual resources – यह वो संसाधन है, जो किसी एक इंसान की होती है। जैसे की – अपनी जमीन, किताबे, गाड़ी, फ़ोन, आदि।
Community resources – यह वैसे संसाधन है, जो की बहुत सारे लोगों के होते है। जी की हमारी कॉलोनी का पार्क, रास्ते, आदि।
National resources – यह वैसे संसाधन है, जो की पुरे देश के होते है। जैसे की – सड़के, ट्रेन, नदी, समुद्र, आदि। साथ ही किसी समुद्र के किनारे से लगभग 22.2 km या 12 नॉटिकल माइल का समुद्री इलाका उसी देश का हिस्सा होता है।
International resources – यह वैसे संसाधन होते है, जो की पूरी दुनिया से संबंधित होते है। जैसे की सूरज, समुद्र, हवा, आदि।
क्या है स्थायी विकास? (Sustainable development)
इसका मतलब यह है, की हमे अपने सभी संसाधनों को एक सीमा के अंतर्गत इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि यह ख़त्म ना हो जाये और हमारी आने वाली पीढ़ी भी इसका इस्तेमाल कर सके। और ऐसा करने के लिए हमे एक अच्छे योजना की जरुरत होगी, ताकि हमे यह पता चल सके की हमे चीजों को कैसे और कब इस्तेमाल करना चाहिए। इसी चीज़ को हम “resource planning” भी कहते है।
भारत में संसाधन योजना? (resource planning in india)
- यहाँ सरकार पहले यह पता लगाती है की, हमारे पास कौन सा संसाधन कहा पर है, और कितनी मात्र में है। जैसे की भारत में “कोयला” झारखण्ड, छत्तीसगढ़, और मध्यप्रदेश में पाया जाता है, और वहा पर कोयला का भंडार करोड़ो टन में मौजूद है।
- इसके बाद सरकार यह प्लान करती है, की उस संसाधन को इस्तेमाल करने का सबसे अच्छा और संसाधन तरीका क्या है, और उसके लिए हमे किन सामानों, कैसे लोगों और साथ ही कैसी टेक्नोलॉजी की जरुरत होगी।
- फिर अंत में सरकार यह तय करती है की, हम उस संसाधन को कितना इस्तेमाल करेंगे और कितना आगे के लिए बचाकर रखंगे। और इसे देश की अभी की जरूरते और भविष्य की योजनओं के मद्दे नजर ही तय किया जाता है।
भूमि संसाधन (Land resources)
भारत में मौजूद 43% जमीन “Plains” यानि की मैदानी इलाको में आती है, और यहाँ पर खेती वगेरा अच्छे से की जा सकती है। अगली 30% जमीन “mountains” यानि की पहाड़ी इलाको की श्रेणी में आती है, जहा से की भारत की भारत की काफी सारी नदिया निकलके आती है, और साथ ही पर्यटक लोग भी यहाँ जाना काफी पसंद करते है। बाकि बची 27% जमीन “plateau” यानि की पठार की श्रेणी में आती है। इन इलाको में खनिजों की mining की जाती है, क्युकी यह खनिजों से भरे हुए इलाके होते है।
मगर यह जो जमीन है, जिसपर हम खेती-बाड़ी करते है, वो अब धीरे-धीरे बेकार होती जा रही है, और अब इनपर खेती करना मुश्किल होता जा रहा है। इस चीज़ को “land degradation” यानि क भूमि अवक्रमण कहा जाता है। जिसका आर्थ यह होता है की, किन्ही प्राकृतिक या मानवीय गतिविधियों के कारण किसी जमीन की गुणवत्ता का कम हो जाना, जिस कारण वो खेती करने लायक ही ना बचे।
इसके मुख्य कारण होते है –
Overgrazing (चराई) – यानि की किसी जमीन पर बकरी, गाई, आदि अगर एक ही जगह पर घास खाती रहेगी, तो वहा की घास ख़त्म हो जाएगी, जिससे उस जमीन पर काफी बुरा असर पडता है। ऐसा हमे ज्यादातर गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, आदि में देखने को मिलता है।
Overirrigation (अत्याधिक सिंचाई) – यह तब होता है, जब किसी जमीन में खेती के वक़्त ज्यादा पानी दाल दिया जाता है, जिस कारण वो जमीन बेकार बन जाती है। क्युकी किसी जमीन पर जब ज्यादा पानी दिया जाता है, तो पानी वहा पर खड़ा ही रहता है, और ऐसा लगता है की उस इलाके में बाढ़ आ गयी है। और यह जमीन को किसी दलदल जैसा बना देती है।
Industrialisation (औद्योगीकरण) – फैक्ट्रियों से आने वाली गन्दगी जमीन पर आसानी से फैल जाती है, जो की भूमि और जल प्रदूषण का कारण बनती है।
Mining (खुदाई) – जब किसी इलाके में mining की जाती है, तो पहले तो इसके लिए वहा मौजूद सारे पेड़ो को काटा जाता है। साथ ही वहा कोयले को जलाया भी जाता है, जो की आस-पास की जमीनों को बिलकुल ख़राब कर देती है।
Cement and ceramic industry (सीमेंट और चीनी मिट्टी उद्योग) – यह जो सीमेंट और चीनी मिट्टी बनाने वाली इंडस्ट्री होती है, वहा इन्हें बनाने के लिए limestone यानि की चूना पत्थर को छोटे-छोटे हिस्सों में तोडा जाता है, और इस कारण वहा काफी धुल तैयार हो जाती है, और हवा में फैल जाती है। और जब यह धुल जमीन पर बैठ जाती है, जो यह उस जमीन को बेकार कर देती है। ऐसा इसलिए, क्युकी तब पानी को उस जमीन के अंदर जाने में काफी ज्यादा दिक्कत होती है।
Land degradation का समाधान?
- वनीकरण, यानि की जमीनों की हालत सुधारने के लिए हम और ज्यादा पेड़-पौधे लगाने की जरुरत है।
- जानवरों को किसी जमीन पर एक निर्धारित सीमा तक ही चराना चाहिए।
- फैक्ट्री और इंडस्ट्रीज को अपनी गन्दगी का अच्छे से निपटारा करना चाहिए, ताकि वो अच्छी जमीनों तक ना पहुच सके।
- इसके अलावा ज्यादा mining को भी नियंत्रण में रखना चाहिए।
कैसे होता है मिट्टी का कटाव? (soil erosion)
इसका मतलब होता है मिटटी की सबसे ऊपर वाली परत का गायब हो जाना। इसके होने का सबसे बड़ा कारण होता है पानी और हवा। जब पानी किसी मिटटी से होकर बहता है, तब यह अपने साथ-साथ मिट्टी की ऊपर वाली परत को भी अपने साथ बहा ले जाता है। और जब तेज हवा चलती है, तब वो भी अपने साथ मिट्टी को भी उड़ा ले जाती है।
इनके अलावा भी मिट्टी के कटाव के काफी कारण हो सकते है, जैसे की –
- अत्यधिक चराई,
- वनों की कटाई
- निर्माण कार्य ,
- खनन, आदि।
साथ ही अगर हम गलत तरीके के खेती करे, तो भी soil erosion होने की काफी संभावना होती है। और ऐसा होने पर वो जगह भी खेती-बारी करने के लायक नही बचती है। फिर उस इलाके को “bad land” यानि की ख़राब जमीन कहा जाता है।
मिट्टी के कटाव का समाधान? (Solution of soil erosion)
- इससे बचने का एक उपाए तो यह है, की खेती अच्छे से की जाये। जब हम खेत को जोते, तो उसे पानी की धारा के opposite यानि की विपरीत दिशा में किया जाये।
- इसके अलावा हमे लगातार पेड़-पौधे उगाते रहना चाहिए, और shelterbelt बनाना चाहिए। और shelterbelts का मतलब होता है, पदों को एक लाइन से लगाना।
- साथ ही पहाड़ो पर “terrace farming” की जाये, यानि की पहाड़ो की ढलान को सीढ़ियों जैसा आकार देकर उसमे खेती करना।
- हमे जमीनों पर घास को अच्छे से उगने देना चाहिए, ताकि उससे हवा का प्रवाह बाधित हो जाये, और वो मिट्टी को अपने साथ ना बहा सके।
- साथ ही हमे जमीनों पर जानवरों की चराई भी एक सीमा में करनी चाहिए।
Resources and development – मिट्टी के प्रकार? (Types of soil)
Alluvial soil (कछार की मिट्टी)
हमारे देश भारत में alluvial soil ही सबसे अधिक जगह में मौजूद है। साथ ही पुरे उत्तर भारत में यही मिट्टी पाई जाती है। यह मिट्टी काफी उपजाऊ होती है, जिस कारण इस पर खेती भी अच्छे से की जा सकती है। यह मिट्टी ,धान, गेहूं और अन्य अनाज की फसलें के लिए काफी अच्छी होती है। इस मिट्टी की उम्र से इसे दो प्रकारों में रखा गया है –
Bangar | Khadar |
यह काफी पुराणी alluvial मिट्टी होती है। | यह उम्र में काफी नई alluvial मिट्टी होती है। |
इसमें ज्यादा कंकर मौजूद होता है। | इसमें कम कंकर मौजूद होता है। |
यह कम उपजाऊ होती है। | यह ज्यादा उपजाऊ होती है। |
Black soil (काली मिट्टी)
यह मिट्टी कपास या रूई उगाने के लिए सबसे अच्छी होती है। साथ ही ये अपने अंदर नमी को जमा करके रखती है। और यह मिट्टी मुख्य रूप से उत्तर पश्चिमी दक्कन के पठार, महाराष्ट्र के पठार और मालवा के पठारों में पाई जाती है।
Red and yellow soil (लाल और पीली मिट्टी)
यह उन इलाको में पाया जाता है, जहा बारिस कम होती है और जहा crystalline igneous पत्थर मौजूद होते है। यह दक्षिण और पूर्वी दक्कन के पठार, और छत्तीसगढ़ साथ ही ओडिशा में भी मिलते है।
Laterite soil (लैटेराइट मिट्टी)
यह मिट्टी वहा पर मिलती है, जहा पर बहुत ज्यादा बारिस होती है, और जहा का तापमान भी काफी अधिक रहता है। इन जगहों पर humus भी थोरा कम रहता है, क्युकी यहाँ के अधिक तापमान के कारण यहाँ मौजूद जीवाणु मर जाते है। लेकिन अगर हम खाद और fertilizers का अच्छे से उपयोग करे, तो यहाँ पर भी ढंग से खेती बारी की जा सकती है।
यह मिट्टी हमे कर्नाटक, केरल, तमिल नाडू, ओडिशा, और असम के पहाड़ी इलाको में मिलती है। और यहाँ पर ज्यादातर कॉफ़ी और चाय की खेती की जाती है।
Arid soil (शुष्क मिट्टी)
यह दिखने में लाल और भूरे प्रकार का होता है। यह बहुत ज्यादा रेतीला होता है, और इसका स्वाद नमकीन होता है। यह मिट्टी ज्यादातर उच्च तापमान और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। इसके अंदर नमी और humus की कमी होती है। तो अगर इसमें खेती करनी है, तो उसके लिए काफी मात्र में पानी की आवश्यकता पड़ती है। कौर यह मिट्टी ज्यादातर राजस्थान में पाई जाती है।
Forest soil (जंगल की मिट्टी)
यह पहाड़ी क्षेत्र में मिलती है, जहा पर बारिस ठीक-ठाक हो जाती है। सामान्य रूप से यह उपजाऊ होती है, मगर अगर पहाड़ो में बर्फ गिरती है, तो यह कम उपजाऊ हो जाती है, और साथ ही acidic भी बन जाती है। यह हमे उत्तर भारत, जहाँ हिमालय के पहाड़ है, वहा पे मिल जाती है।
FAQ (Frequently Asked Questions)
किसी समुद्र किनारे के बाद की कितनी दुरी उसी देश का हिस्सा होती है?
किसी समुद्र के किनारे से लगभग 22.2 km या 12 नॉटिकल माइल का समुद्री इलाका उसी देश का हिस्सा होता है।
भारत में कोयला कहा-कहा पाया जाता है?
भारत में “कोयला” झारखण्ड, छत्तीसगढ़, और मध्यप्रदेश में पाया जाता है।
आशा करता हूं कि आज आपलोंगों को कुछ नया सीखने को ज़रूर मिला होगा। अगर आज आपने कुछ नया सीखा तो हमारे बाकी के आर्टिकल्स को भी ज़रूर पढ़ें ताकि आपको ऱोज कुछ न कुछ नया सीखने को मिले, और इस articleको अपने दोस्तों और जान पहचान वालो के साथ ज़रूर share करे जिन्हें इसकी जरूरत हो। धन्यवाद।
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