उत्तर कोरिया का नकली प्रचार गांव | Potemkin, Fake village in north korea explaination in hindi
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सभी लोगों में खुद को दूसरों के सामने समर्पण और सफल दिखने की चाह होती है । आज काफी लोग दूसरो के सामने खुद को सफल और महान दिखाना चाहते है। और इसके लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते है।
मगर क्या आपको मालूम है, दुनिया में एक देश ऐसा भी है जो अपनी इन्हीं दिखावटी हरकतों के लिए काफी जाना जाता है? यह देश और कोई नहीं बल्कि तानाशाही ताकतों से चलने वाला देश “North Korea” है।
इस देश की अजीबो-गरीब हरकतों ने आज पूरी दुनिया के नाक में दम करके रखा हुआ है । आप इस देश के बारे में जिनता जानने की कोशिश करेंगे, आप को इसके बारे में उतनी ही रोचक जानकारियां जानने को मिलेगी।
इस देश में होने वाली काफी सारी चीज़े हम आम लोगों के सोच से भी परे है । आज हम इस देश की ऐसी ही एक अजीबो-गरीब हरकत के बारे में जानेंगे, जिसे वहां के तानाशाहों द्वारा दुनिया को अपनी नकली शान दिखने के लिए बनाया गया है।
यह और कुछ नहीं बल्कि उत्तर कोरिया के बॉर्डर पर बनाया गया एक गाँव है, जिसे “fake village” या “potemkin village” भी कहा जाता है । तो आइए आज हम जानते इस नकली गाँव के बारे में कुछ ऐसी बातें, जिनके बारे में शायद ही आपको मालूम हो।
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क्या और कहां है ये गाँव? (north korea fake village location)
इस fake village का नाम “Kijong-dong” है, और यह कोरियाई Demilitarized Zone (DMZ) के उत्तर में स्थित है । इस गांव को “peace village” यानी की शांति गाँव के नाम से भी जाना जाता है । मगर बाहर के लोगों द्वारा, विशेष रूप से दक्षिण कोरियाई मीडिया और पश्चिमी मीडिया इसे एक “प्रचार गाँव” मानती है, जिसे सिर्फ छल करने के उद्देश्य से बॉर्डर पर बनाया गया है।
यह उन दो गांव में से एक है, जो सन 1953 में हुए कोरियाई युद्ध के बाद बने 4 किलोमीटर के Demilitarized Zone (DMZ) के अंदर मौजूद है । दूसरे गांव का नाम “Daeseong-dong” है, जो की इससे लगभग 2.2 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है।
पोटेमकिन का अर्थ क्या है? (Potemkin village meaning in hindi)
Potemkin fake village शब्द का उपयोग एक नकली प्रचार गांव का वर्णन करने के लिए किया जाता है, जिसे अन्य राष्ट्र और विदेशियों को प्रभावित करने के उद्देश्य से बनाया जाता है।
इस शब्द का इस्तेमाल इतिहास में होता आया है, मगर इसका पहला रिकॉर्ड सन 1787 के समय का मिलता है, जब इसे रूस के मुख्य सैन्य अधिकारी “Grigory potemkin” द्वारा रूस की रानी और अपनी पूर्व प्रेमिका “Catherine II” को प्रभावित करने के उद्देश्य से इस्तेमाल में लिए गया था।
Crimea क्षेत्र के रूसी संबंध के बाद Grigory को वहां का गवर्नर बना दिया गया था, और उन्हें उस छेत्र को दोबारा से तैयार करने और वहां के लोगों के जीवन को समर्पण बनाने की जिम्मेदारी दी गयी थी।
इसके कुछ समय बाद रानी खुद वहां जाकर उस जगह का मुआयना करना चाहती थी, ताकि वह उन सारी जगहों से परिचित हो सके और उनके साथ आ रहे राजदूत को भी प्रभावित कर सके । मगर जंग के कारण Crimea छेत्र की दशा काफी ज्यादा ख़राब हो चुकी थी, जिस कारण रानी के आने तक उस जगह का काम पूरा करना नामुमकिन था।
इन्ही सब कारणों से Grigory काफी ज्यादा चिंतित और परेशान थे, क्योंकि वह रानी को नाराज नही करना चाहते थे । ऐसा माना जाता है की Grigory ने इसी हालात से बचने के लिए नदी किनारे नकली घर के ढांचे खरे करवाए, और लोगों को अच्छे पोशाक पहन कर, नकली घरों के आस-पास घूमने को कहा। ताकि रानी और राजदूत जब अपनी नाव में नदी से गुजरे, तब वह इन नकली घरों और लोगों को देखकर खुश हो गए और उन्हें असलियत का पता ना चल पाए।
जब रानी एक जगह से गुजर जाती तब लोग रात में इन नकली घरों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाकर लगा देते, ताकि अगले दिन भी रानी को इन्हें दिखाया जा सके। हालांकि, कई इतिहासकारों का मानना है की, यह कहानी बेबुनियाद और बनावटी है, क्योंकि इससे संबंधित कोई पुख्ता सबूत आजतक नही मिल पाए है।
नकली गाँव का क्या है इस्तेमाल? (Potemkin/fake village uses)
पोटेमकिन गांवों को विशेष रूप से तब बनाया जाता था, जब कोई सरकार बाहरी लोगों को कुछ ऐसा दिखाना चाहती थी, जो कि असलियत में उनके प्रदेशों में मौजूद ही नहीं होती थी।
इस fake village का इस्तेमाल बाहरी लोगों को यह विश्वास दिलाने के लिए किया जाता था, कि उनका देश काफी अच्छी स्थिति में है, और काफी तरक्की कर रहा था, जो की वास्तव से बिल्कुल उलट होता था । इसे दूसरो के सामने अपनी नाकामी को छुपाने के उद्देश्य से इस्तेमाल किया जाता था।
उत्तर कोरिया में कैसे थे हालात? (North Korea condition in past)
दुनिया में अपनी छवि बनाए रखने के लिए उत्तर कोरिया ने हमेशा संघर्ष किया है । सन 1953 में कोरियाई युद्ध के समाप्ति के बाद राष्ट्र दो भागों में विभाजित हो गया, और वह दक्षिण और उत्तर कोरिया के नाम से दो अलग देश बन गए।
मगर दोनों देशों की आबादी कभी भी दिल से विभाजित नहीं हो सकी, और वे अभी भी एक दूसरे को भाइयों और बहनों के रूप में मानते थे । उन्हें सिर्फ जबरन अलग कर दिया गया था, ठीक उसी तरह जैसा की पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के लोगों को किया गया था, जो आखिरकार साल 1990 में एकजुट हो गए।
ठीक इसी तरह कोरियाई आबादी भी अपने एकीकरण के लिए काफी ज्यादा तत्पर थी । इन्ही कारणों से उत्तर कोरियाई शासन को काफी ज्यादा खतरा महसूस होने लगा। विशेष रूप से 1970 के दशक की शुरुआत में दक्षिण कोरिया की तुलना में आर्थिक विकास में काफी ज्यादा पिछड़ जाने के बाद उन्हें अपनी तानाशाही सत्ता के बिखर जाने का डर सताने लगा।
एक तरफ जहां उत्तर कोरिया के अधिकांश लोग केवल बुनियादी सुविधाओं के साथ रह रहे थे, वही दूसरी तरफ कई दक्षिण कोरियाई लोगों की जीवनशैली कुछ पश्चिमी देशों से भी आगे थी।
उत्तर कोरिया काफी संख्या में अकालों से भी गुज़रा, और देश की अधिकांश आबादी गंभीर रूप से कुपोषण की शिकार थी। उत्तर कोरियाई सरकार ने 1980 के दशक के माध्यम से काफी ज्यादा संघर्ष जारी रखा । विशेष रूप से “Soviet Union” के पतन के बाद उत्तर कोरियाई लोगों की काफी बढ़ती संख्या ने दक्षिण कोरिया की ओर पलायन करने का प्रयास किया।
हालांकि उत्तर कोरिया ने कोरिया के उत्तर और दक्षिण दोनों के अपने शासन के तहत एकीकरण का मांग की थी, मगर वहां के लोग उत्तर कोरिया के दमनकारी नेतृत्व के बजाय दक्षिण की सुरक्षा और सरकारी व्यवस्था के तहत एकजुट होने के लिए अधिक इच्छुक थे।
हालात छिपाने को बनाया गया गांव? (North korea fake village construction)
उत्तर कोरिया हमेशा से ही एक अत्यधिक गुप्त राष्ट्र के रूप में अपनी समस्याओं की वास्तविक सीमा को छिपाने की कोशिश करता रहा है । इसलिए किसी को भी यह नहीं पता होता कि वास्तव में इस देश के अंदर क्या चल रहा है । इन्ही सब कारणों से वहा की सरकार द्वारा यह नकली गांव बनाया गया है, ताकि अन्य लोगों को भ्रमित किया जा सके।
सीमा से इसकी निकटता और इस तथ्य के कारण कि इसे दक्षिण कोरिया के Demilitarized Zone (DMZ) से देखा जा सकता है, यह उत्तर कोरियाई प्रचार का एक प्रदर्शन बन गया, जिसे उत्तर कोरियाई सरकार अपनी नकली शाक दिखाने के लिए इस्तेमाल करती है।
यह नकली गाँव या fake village उत्तर कोरियाई संस्थापक और शाश्वत नेता “Kim il-sung” द्वारा बनाया गया था, जिन्होंने 1994 में अपनी मृत्यु तक इस देश पर शासन किया था । इसके बाद इस fake village को उनके उत्तराधिकारी “Kim Jong-il” ने 2011 में अपनी मृत्यु तक बनाए रखा, और आज इसे “Kim jong-un” द्वारा संभाला जा रहा है।
इस fake village में इतनी सुविधाए दी गयी थी, जो किसी आम उत्तर कोरियाई गांव में मौजूद नही होती । इसे बड़े पैमाने पर पुनर्निर्मित किया गया था, ताकि यह दिखाया जा सके कि उत्तर कोरियाई लोग काफी सुख और आराम में अपना जीवन बिता रहे है।
उत्तर कोरियाई अधिकारियों के बयान के अनुसार, इस fake village में एक सामूहिक खेत था, जिसे वहां की स्थानीय आबादी द्वारा इस्तेमाल किया जाता था । साल 1991 में जारी एक अन्य बयान में यह कहा गया कि उस समय वहां 200 परिवार रह रहे थे। हालाँकि 1991 के बाद उस गांव से संबंधित कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया गया है, इसलिए हमें आज नहीं पता कि यह संख्या बढ़ी है या घटी है।
क्या-क्या थी सुविधाएं? (North korea fake village facilities)
इस fake village में एक बाल देखभाल केंद्र, एक बालवाड़ी, एक प्राथमिक विद्यालय, एक माध्यमिक विद्यालय और एक अस्पताल मौजूद था । गांव को एक सच्चे कम्युनिस्ट स्वर्ग की तरह बनाया गया था, जहां लोग राज्य संसाधनों पर एक साथ काम किया करते और बदले में उन्हें उत्तर कोरियाई शासन से हर तरह की सुविधा मिलती थी।
इस गाँव में अभी भी बहुमंजिला इमारतें मौजूद हैं, जो काफी उत्कृष्ट स्थिति में दिखाई देते हैं । इन्हें चमकीले रंगों से रंगा गया है, जो आँखों को काफी आकर्षित करती है।
साथ ही इस fake village को बिजली और कई अन्य आधुनिक सुविधाएं भी प्रदान की गयी थी । गाँव की सबसे बड़ी खासियत वहां मौजूद 160 मीटर लंबा एक झंडा लगाने का टावर है, जिसमे उत्तर कोरियाई झंडा फहराया गया था।
यह टावर 1980 के दशक में बनाया गया था, और 2010 तक यह दुनिया का सबसे लंबा flagpole था। इसका टावर का निर्माण सीमा पार मौजूद दक्षिण कोरियाई flagpole के जवाब में किया गया था, ताकि अपने झंडे को और ऊँचा दिखाया जा सके।
क्या है हकीकत? (North korea fake village realty)
हालांकि दूर से देखने पर इस fake village में मौजूद सभी घर चमकदार और सुंदर लगते है । मगर अच्छे दूरबीनों और कैमरों की मदद से देखे जाने पर कुछ और ही मामला नज़र आता है। कई घरों की खिड़कियों पर तो शीशे तक नही लगे हुए है । ऐसा प्रतीत होता है की यह घर सिर्फ कंक्रीट के बने खाली ढांचे है, और कईयों को देखकर तो ऐसा लगता है, जैसे उनमे कमरे और फर्श तक मौजूद नही है।
Fake village में बने इन इमारतों में बस बिजली को चालू रखा जाता है, ताकि इनमे लोगों के रहने का भ्रम तैयार किया जा सके । ताकि दूर से देखने पर ऐसा लगे की, इस गांव में लोग काफी अच्छे से रह रहे है।
साथ ही व्यस्त जीवन का भ्रम देने के लिए इस गाँव की गलियों में समय-समय पर कृत्रिम गतिविधियां भी करवाई जाती है । इसे उत्तर कोरियाई लोगों द्वारा शांति गांव कहा जाता है, हालाँकि दक्षिण कोरियाई लोगों द्वारा इसे बस एक प्रचार गांव माना जाता है।
इस fake village को बस दक्षिण कोरियाई लोगों और बाहरी पर्यटकों के सामने अपनी नकली शान दिखाने के लिए तैयार किया गया है। यह स्थान लाउडस्पीकर युद्ध का एक हॉटस्पॉट है । सीमा के दोनों ओर से ही loudspeakers का इस्तेमाल खुले आम अपने प्रचार-प्रसार के लिए किया जाता है।
उत्तर कोरियाई लाउडस्पीकर अपने यहां के जीवन के काफी खुशहाल और शांतिमय होने का प्रचार करते है, और दक्षिण कोरियाई सैनिकों और नागरिकों से अपने यहां आकर बस जाने की गुजारिश करते रहते है । मगर उनका यह नकली प्रचार उनके ज्यादा काम नहीं आ पता।
दक्षिण कोरियाई लोगों की तुलना में उत्तर कोरियाई लोगों ने ही ज्यादा अपने देश से पलायन किया है । जिस कारण तानाशाही सरकार और भी ज्यादा बौखलाई रहती है।
यह fake village आज भी उसी तरह और उसी मकसद के साथ कोरियाई बॉर्डर पर स्थित है । मगर आज सब लोगों की इसकी हकीकत मालूम चल चुकी है, और आज सब अपने अच्छे कैमरों और दूरबीनो की मदद से इस छल को खुद भी समझ सकते है।
आशा करता हूं कि आज आपलोंगों को कुछ नया सीखने को ज़रूर मिला होगा। अगर आज आपने कुछ नया सीखा तो हमारे बाकी के आर्टिकल्स को भी ज़रूर पढ़ें ताकि आपको ऱोज कुछ न कुछ नया सीखने को मिले, और इस articleको अपने दोस्तों और जान पहचान वालो के साथ ज़रूर share करे जिन्हें इसकी जरूरत हो। धन्यवाद।
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