Subhas Chandra Bose biography in hindi

सुभाष चन्द्र बोस का जीवन परिचय, जयंती | Subhas Chandra Bose biography, jayanti in hindi

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Subhas Chandra Bose एक भारतीय राष्ट्रवादी नेता थे, जिनकी भारत के प्रति देशभक्ति ने करोड़ो भारतीयों के दिलों में अपनी छाप छोड़ी है। आज उन्हें “आजाद हिंद फौज” के संस्थापक के रूप में भी जाना जाता है और साथ ही आजादी हासिल करने के लिए उनका प्रसिद्ध नारा रह चूका है – “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ है”। 

इस नारे की घुंज से ही Subhas Chandra Bose को महात्मा गाँधी के बिचारो से उलट एक बिलकुल ही निर्भीक और ज्यादा साहसी कदम उठाने वाले नेता के रूप में जाना जाने लगा। 

नाम (Name)सुभाष चंद्र बोस
उपनाम (Nick name )नेताजी
जन्मदिन (Date of birth)23 जनवरी 1897
जन्म स्थान (Birth place)कटक, ओडिशा, भारत
गृह नगर (Hometown)कटक, ओडिशा, भारत
उम्र (Age)48 वर्ष (मृत्यु के समय)
शिक्षा (Education)कला स्नातक (बीए)
स्कूल (School)एक प्रोटेस्टेंट यूरोपीय स्कूल,रेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल, कटक, ओडिशा, भारत
कॉलेज (Collage)प्रेसीडेंसी कॉलेज,स्कॉटिश चर्च कॉलेज,फिट्जविलियम कॉलेज
पेशा (Occupation)राजनेता, सैन्य नेता, सिविल सेवा अधिकारीऔर स्वतंत्रता सेनानी
राजनितिक पार्टी (Political party)भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1921-1939) ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक (1939-1940)
प्रसिद्ध नारे (Famous slogans)‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’‘दिल्ली चलो’‘जय हिंद’‘इत्तेफाक, एतमाद, कुर्बानी’
वैवाहिक स्थिति Marital status)विवाहित
शादी की तारीख (Marriage date)वर्ष 1937
शौक (Hobbies)लिखना पढ़ना, राजनीति
नागरिकता (Citizenship)भारतीय
धर्म (Religion)हिन्दू
जाति (Cast )कायस्थ:
राशि (Zodiac)कुंभ राशि
लम्बाई (Height)5 फीट 9 इंच
वजन (Weight )75 किग्रा
आंखो का रंग (Eye Colour)काला
बालों का रंग (Hair Colour)सफ़ेद एवं काला
मृत्यु की तारीख (Date of death)18 अगस्त 1945
मृत्यु की जगह (Death place)ताइवान
मृत्यु का कारण (Death Reason )ताइपे, ताइवान में विमान दुर्घटनाग्रस्त

Subhas Chandra Bose का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा राज्ये के “कटक” नामक जगह में हुआ था, और 18 अगस्त, 1945 को एक विमान दुर्घटना में जलने से और उसमे लगी चोटों से पीड़ित होने के बाद ताइवान के एक अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई थी। 

मगर आज भी नेताजी से जुडी ऐसे कई बाते है, जिनके बारे में काफी लोगो को मालूम नही। तो आइये आज इस लेख में हम जानते है नेताजी के जीवन से जुडी ऐसे ही कुछ अनसुनी और अनजानी बातों को, जिनके बारे में सायद ही हो आपको मालूम –

Table of Contents

सुभाष चंद्र बोस का जन्म और शुरुआती जीवन (Subhas Chandra Bose birth and early life)

Subhas Chandra Bose का जन्म 23 जनवरी, 1897 को कटक (उड़ीसा राज्य) में जानकीनाथ बोस और प्रभावती देवी के घर में हुआ था। सुभाष आठ भाई और छह बहनों में नौवीं संतान थे। 

नेताजी के पिता, जानकीनाथ बोस, कटक में एक संपन्न और सफल वकील थे, और उन्होंने “राय बहादुर” की उपाधि भी प्राप्त की। बाद में चलके वे बंगाल विधान परिषद के सदस्य भी बने।

कलकत्ता में मौजूद एक यूरोपियन स्कूल में अपनी शुरुवाती पढाई करने के बाद, साल 1909 में बारह साल की उम्र में Subhas Chandra Bose ने अपने पांच भाइयों के साथ कटक के “रेनशॉ कॉलेजिएट” स्कूल में पढ़ाई की। यहां, इस स्कूल में बंगाली और संस्कृत को भी पढ़ाया जाता था, जिनसे नेताजी के अंदर भी वेदों और उपनिषदों जैसे हिंदू शास्त्रों के विचारो ने भी जगह बनाई, जिनके बारे में आम-तौर पे घरो में बाते नही की जाती थी।

हालाँकि Subhas Chandra Bose की पश्चिमी शिक्षा तेजी से जारी रही, साथ ही उन्होंने भारतीय कपड़े पहनना और धार्मिक अटकलों में संलग्न होना भी शुरू कर दिया था। उस समय नेताजी ने अपनी माँ को, लंबे पत्र लिखे, जिसमें बंगाली रहस्यवादी रामकृष्ण परमहंस और उनके शिष्य स्वामी विवेकानंद के विचार, साथ ही बंकिम चंद्र चटर्जी के उपन्यास “आनंद मठ”, जो की उस समय युवा हिंदू पुरुषों के बीच काफी लोकप्रिय था, के विचारों से भरे हुए होते थे। और ऐसे ही धीरे-धीरे उनमे देश भक्ति ने गहरी जगह बना ली।

सुभाष चंद्र बोस का परिवार (Subhas Chandra Bose family)

सुभाष चंद्र बोस के परिवार में उनके पिता, उनकी माता, उनके सात भाई, छह बहने, उनकी पत्नी, और उनकी बेटी मौजूद है, जिनकी जानकारी निचे दी गयी है –

माता का नाम (Mother)प्रभावती देवी
पिता का नाम (Father)जानकीनाथ बोस
भाई का नाम (Brothers)शरत चंद्र बोस और इनके अलावा और छह भाई 
बहन (Sisters)छह बहने (जिनके नाम ज्ञात नहीं है)
पत्नी (Wife)एमिली शेंक्ली
बेटी (Daughter)अनीता बोस फाफ

सुभाष चंद्र बोस की शिक्षा (Subhas Chandra Bose education)

Subhas Chandra Bose का जन्म चौदह बच्चों वाले परिवार में हुआ था, जिसमे वे नौवें बच्चे थे। उन्हें अपने सभी भाई-बहनों के साथ कटक के प्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल, जिसे अब स्टीवर्ट हाई स्कूल कहा जाता है, में भर्ती कराया गया। सुभाष चन्द्र बोस ने बैपटिस्ट मिशन द्वारा संचालित इस स्कूल में साल 1909 तक अपनी शिक्षा जारी रखी और फिर रेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल में स्थानांतरित हो गए।

Subhas Chandra Bose हमेशा से ही एक मेधावी छात्र रहे थे। उन्होंने साल 1913 में आयोजित मैट्रिक परीक्षा में दूसरा स्थान हासिल किया, और जिसके बाद में उन्हें प्रेसीडेंसी कॉलेज में भर्ती कराया गया, जहाँ उन्होंने एक छोटी अवधि के लिए अध्ययन किया। इसके बाद उन्होंने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से दर्शनशास्त्र में बीए पास किया। 

वह स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं से बहुत प्रभावित थे, और एक छात्र के रूप में अपने देशभक्ति के उत्साह के लिए भी काफी जाने जाते थे। फिर नेताजी के जीवन में एक घटना हुई, जहां बोस ने अपने एक प्रोफेसर (ईएफ ओटेन) को उनकी नस्लवादी टिप्पणियों के लिए पीटा, जिसके बाद ब्रिटिश सरकार की नजर में उन्हें एक विद्रोही-भारतीय के रूप में बदनाम कर दिया। 

हालांकि बाद में Subhas Chandra Bose ने इस तथ्य के लिए अपील की कि उन्होंने इस हमले में कोई भाग नहीं लिया था, लेकिन केवल एक दर्शक थे, जिस कारण बाद में उन्हें निष्कासित कर दिया गया था। इस घटना ने उनके अंदर विद्रोही भावना की एक मजबूत भावना को प्रज्वलित किया। बाद में उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय में स्कॉटिश चर्च कॉलेज में प्रवेश लिया और साल 1918 में यहाँ से दर्शनशास्त्र में बीए की डिग्री प्राप्त की।

इनसब के बाद Subhas Chandra Bose ने अपने पिता से वादा किया था कि वह भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) की परीक्षा देंगे, जिसके लिए उनके पिता ने उनके लिए उस समय 10,000 रुपये आरक्षित किए थे फिर उन्होंने अपने भाई सतीश के साथ लंदन में रहकर इस परीक्षा की तैयारी की। फलस्वरूप  उन्होंने सफलतापूर्वक आईसीएस परीक्षा उत्तीर्ण की, जिसमे बोस को अंग्रेजी में सर्वोच्च अंक के साथ चौथा स्थान मिला।

हालाँकि, स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने की उनकी तीव्र इच्छा थी और इसी कारण अप्रैल 1921 में, उन्होंने प्रतिष्ठित भारतीय सिविल सेवा से इस्तीफा दे दिया और दिसंबर 1921 में, भारत वापस आ गए, ताकि स्वतंत्रता आंदोलन की इस लड़ाई को और अच्छे से आगे बढ़ा सके। 

सुभाष चन्द्र बोस का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ना (Subhas Chandra Bose join indian national congress)

शुरुवाती समय में, Subhas Chandra Bose ने कलकत्ता में कांग्रेस के एक सक्रिय सदस्य “चित्तरंजन दास” के नेतृत्व में काम शुरू किया। यह चित्तरंजन दास ही थे, जिन्होंने मोतीलाल नेहरू के साथ कांग्रेस छोड़ दी और बाद में साल 1922 में स्वराज पार्टी की स्थापना की। बोस ने चित्तरंजन दास को ही अपना राजनीतिक गुरु माना था। 

उन्होंने स्वयं अखबार ‘स्वराज’ को शुरू किया, दास अखबार ‘फॉरवर्ड’ का संपादन किया किया करते थे और उन्होंने एक महापौर के रूप में दास के कार्यकाल में कलकत्ता नगर निगम के सीईओ के रूप में भी काम किया। इसके अलावा Subhas Chandra Bose ने कलकत्ता के छात्रों, युवाओं और मजदूरों को जागरूक करने में भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 

भारत देश को एक आजाद स्वतंत्र, संघीय और गणतंत्र राष्ट्र के रूप में देखने के अपने संघर्ष और इंतजार में, वह एक करिश्माई और तेजतर्रार युवा प्रतीक के रूप में उभरे। साथ ही संगठन के विकास में उनकी महान क्षमता के लिए कांग्रेस पार्टी के भीतर भी उनकी काफी प्रशंसा की गई। साथ ही  इस दौरान, अपनी राष्ट्रवादी गतिविधियों के लिए नेताजी को कई बार जेल भी जाना पड़ा।

सुभाष चन्द्र बोस का कांग्रेस से विवाद (Subhas Chandra Bose conflict with congress)

फिर साल 1928 में, कांग्रेस के गुवाहाटी अधिवेशन के दौरान, कांग्रेस के पुराने और नए सदस्यों के बीच मतभेद सामने आया। युवा नेता “पूर्ण स्वशासन और बिना किसी समझौते के” आजादी चाहते थे, जबकि वरिष्ठ नेता “ब्रिटिश शासन के भीतर भारत के लिए प्रभुत्व की स्थिति” के पक्ष में थे।

जिस कारण उदारवादी महात्मा गांधी और आक्रामक Subhas Chandra Bose के बीच मतभेद बहुत ज्यादा बढ़ गए और बोस ने साल 1939 में कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देने का फैसला किया। जिसके बाद उन्होंने उसी वर्ष फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया।

हालाँकि Subhas Chandra Bose ने अपने पत्राचार में अक्सर अंग्रेजों के प्रति अपनी नापसंदगी व्यक्त की, लेकिन उन्होंने उनके संरचित जीवन शैली के लिए भी अपनी प्रशंसा व्यक्त की। उन्होंने ब्रिटिश लेबर पार्टी के नेताओं और क्लेमेंट एटली, हेरोल्ड लास्की, जेबीएस हाल्डेन, आर्थर ग्रीनवुड, जीडीएच कोल और सर स्टैफोर्ड क्रिप्स सहित कई राजनीतिक विचारकों के साथ मुलाकात भी की और उन संभावनाओं पर चर्चा की जो एक स्वतंत्र भारत में हो सकती हैं।

Subhas Chandra Bose ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों का समर्थन करने के कांग्रेस के फैसले का कड़ा विरोध भी किया था। फिर एक जन आंदोलन शुरू करने के उद्देश्य से, बोस ने भारतीयों से उनकी पूर्ण भागीदारी के लिए आह्वान किया। जिसमे उन्होंने अपना सबसे लोकप्रिय नारा दिया, जो की था  “मुझे खून दो और मैं तुम्हें आजादी दूंगा” जिसकी जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई और अंग्रेजों ने उन्हें तुरंत ही कैद कर लिया। 

फिर जेल में उन्होंने भूख हड़ताल की घोषणा की। और जब उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया, तो अधिकारियों ने हिंसक प्रतिक्रियाओं के डर से उन्हें रिहा कर दिया, लेकिन उन्हें अपने घर में ही नजरबंद करने का आदेश दिया।

सुभाष चन्द्र बोस की शादी ,पत्नी (Subhas Chandra Bose Marriage, Wife)

Subhas Chandra Bose के साल 1934 में की गयी जर्मनी की यात्रा के दौरान, उनकी मुलाकात ऑस्ट्रियाई पशु चिकित्सक की बेटी “एमिली शेंकल” से हुई थी। सुभाष चंद्र बोस की पत्नी का परिचय बोस से एक पारस्परिक मित्र, डॉ. माथुर, वियना में रहने वाले एक भारतीय चिकित्सक के माध्यम से हुई थी। फिर इसके बाद बोस ने उन्हें अपनी पुस्तक टाइप करने के लिए नियुक्त किया।

जल्द ही, उनदोनो को एक दूसरे से प्यार हो गया और साल 1937 में बिना किसी गवाह के चुपके से ही उनदोनो ने शादी कर ली। उनकी बेटी के अनुसार, एमिली शेंकल (बोस की पत्नी) एक बहुत ही निजी महिला थीं और उन्होंने सुभाष चंद्र बोस के साथ अपने संबंधों के बारे में कभी ज्यादा बात भी नहीं की।

सुभाष चन्द्र बोस की बेटी (Subhas Chandra Bose daughter)

नेताजी Subhas Chandra Bose की बेटी, अनीता बोस फाफ, केवल चार महीने की थीं, जब बोस ने उन्हें अपनी मां के साथ छोड़ दिया और दक्षिण-पूर्व एशिया चले गए। तब से, उसकी माँ ही उनके परिवार में अकेली कमाने वाली थी। उनकी बेटी को उसके जन्म पर उसके पिता का अंतिम नाम नहीं दिया गया था, और वह “अनीता शेंकल” नाम से ही बड़ी हुई थी।

अनीता फाफ ने “ऑग्सबर्ग विश्वविद्यालय” में एक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में काम किया और “मार्टिन फाफ” नामक व्यक्ति से शादी कर ली।

सुभाष चन्द्र बोस का जर्मनी भाग जाना (Subhas Chandra Bose’s escape to Germany)

16 जनवरी साल 1941 को, Subhas Chandra Bose अपने चचेरे भाई शिशिर कुमार बोस के साथ अफगानिस्तान और सोवियत संघ के रास्ते जर्मनी के लिए एल्गिन रोड हाउस (कलकत्ता) से भाग निकले। 

पहचाने जाने से बचने के लिए उन्होंने एक लंबा ओवरकोट और चौड़ा पजामा (बिलकुल किसी ‘पठान’ की तरह) पहना हुआ था। अपने भागने के लिए उन्होंने जिस कार का इस्तेमाल किया वह एक जर्मन निर्मित वांडरर W24 सेडान कार, जिसका नंबर (Reg. No. BLA 7169) था, जो अब उनके एल्गिन रोड हाउस, कोलकाता में लोगों के देखने के लिए प्रदर्शित की हुई है।

इंडियन नेशनल आर्मी की स्थापना (Establishment of Indian National Army) 

जनवरी साल 1941 में Subhas Chandra Bose पेशावर से होते हुए बर्लिन, जर्मनी पहुंचे तो उन्होंने वहा एक भारतीय सेना का गठन किया, जिसे नाजी नेता “एडोल्फ हिटलर” से भी काफी समर्थन मिला। फिर इस सेना के सदस्यों ने सुभाष चंद्र बोस और उनकी सेना के लिए अंतिम सांस तक लड़ने की शपथ ली। उन्होंने यह घोषणा की कि जर्मन लोग हमेशा भारतीयों के साथ हमेशा एक दोस्त के रूप में उनका साथ देगी और उनकी हर संभव मदद करेगी।

नाजी पार्टी से संबंधित जर्मन सशस्त्र बलों ने भी शपथ ली कि वे हमेशा भारत और इस देश के नेता Subhas Chandra Bose का समर्थन करेंगे। जर्मन सशस्त्र बलों द्वारा ली गई यह शपथ जर्मन सशस्त्र बलों के लिए भारतीय सेना के नियंत्रण को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करती है, और बोस के भारत के समग्र नेतृत्व को भी बताती है।

हालाँकि, यह गठबंधन बहुत फलदायी नहीं था, क्योंकि Subhas Chandra Bose ने यह महसूस किया कि हिटलर सैन्य सैनिकों के बजाय प्रचार जीत के लिए अपने सैनिकों का उपयोग करने में अधिक रुचि रखता है, और इसके परिणामस्वरूप जर्मनों द्वारा सैन्य मोर्चे पर उन्हें कोई सहायता प्रदान नहीं की गई।

सुभाष चन्द्र बोस की मौत (Subhas Chandra Bose death)

फ़ौज के भारत वापस आने के तुरंत बाद नेताजी Subhas Chandra Bose रहस्यमय तरीके से गायब हो गए। ऐसा कहा जाता है कि, वह सिंगापुर वापस गए और दक्षिण पूर्व एशिया में सभी सैन्य अभियानों के प्रमुख फील्ड मार्शल “हिसाइची तेराची” से मिले, जिन्होंने उनके लिए टोक्यो जाने के लिए एक उड़ान यात्रा की व्यवस्था की। 

फिर Subhas Chandra Bose 17 अगस्त, 1945 को साइगॉन हवाई अड्डे से एक मित्सुबिशी की-21 भारी बमवर्षक विमान पर सवार हुए। इसके बाद अगले दिन वे ताइवान में रात में रुकने के बाद, जब उनके इस विमान ने फिर उडान भरी, तब उड़ान भरने के तुरंत बाद ही ये बमवर्षक विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। चश्मदीदों की रिपोर्ट के अनुसार, इस प्रक्रिया में बोस को थर्ड डिग्री बर्न हुआ। जिस कारण 18 अगस्त, 1945 को उनकी मृत्यु हो गई।

जापानी समाचार एजेंसी “डो त्रज़ी” के अनुसार, 20 अगस्त 1945 में Subhas Chandra Bose के शरीर का मुख्य ताइहोकू श्मशान घाट में अंतिम संस्कार किया गया था। फिर उनकी राख को टोक्यो में निचिरेन बौद्ध धर्म के रेन्क जी मंदिर में रखा गया।

इसके बाद 14 सितंबर को, टोक्यो में बोस के लिए एक स्मारक सेवा आयोजित की गई थी, और कुछ दिनों के बाद, राख को टोक्यो में निचिरेन बौद्ध धर्म के रेनकोजी मंदिर के पुजारी को सौंप दिया गया था। और तब से वे (राख) अभी भी वहीं मौजूद हैं।

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को जान बुचके मारने की साजिश (Subhash Chandra Bose death Conspiracy)

मेजर जनरल जीडी बख्शी ने अपनी पुस्तक- “बोस: द इंडियन समुराई – नेताजी एंड द आईएनए मिलिट्री असेसमेंट” में यह कहा कि Subhas Chandra Bose की जापान से सोवियत संघ में भागने के दौरान एक विमान दुर्घटना में मृत्यु नहीं हुई थी।

साथ ही कई जानकारों का यह मानना है की, जब बोस ने साइबेरिया से तीन रेडियो प्रसारण किए थे, तब इन प्रसारणों की वजह से अंग्रेजों को पता चला कि बोस सोवियत संघ में भाग गए थे।

अंग्रेजों ने तब सोवियत अधिकारियों से संपर्क किया और मांग की कि उन्हें Subhas Chandra Bose से पूछताछ करने की अनुमति दी जानी चाहिए। तब सोवियत अधिकारियों ने उनकी मांग को स्वीकार कर लिया, और बोस को उन्हें सौंप दिया। फिर पूछताछ के दौरान बोस को प्रताड़ित कर मौत के घाट उतार दिया गया।

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जिन्दा होने के सबूत मिलना (Evidence of Netaji Subhash Chandra Bose being alive) 

नेताजी की मौत की जाँच करने वाले जानकारों को ऐसे कुछ सबूत मिले हैं, जो Subhas Chandra Bose को ‘गुमनामी बाबा’ से संबंधित करते हैं। गुमनामी बाबा ने अपना अधिकांश जीवन फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) में बिताया, और उन्हें सुभाष चंद्र बोस के रूप में जाना जाता था। साथ ही यह भी कहा जाता है, कि वह कभी सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आए थे।

सुभाष चन्द्र बोस जयंती (Subhas Chandra Bose Jayanti 2022)

नेताजी Subhas Chandra Bose जी 23 जनवरी को जन्मे थे , और इसलिए हर साल इस दिन को सुभाष चन्द्र बोस जयंती के रूप में मनाया जाता है। इसी क्रम में साल 2022 में 23 जनवरी को ये दिन उनके 125वें जन्मदिन के रूप में मनाया जायेगा।

FAQ (Frequently Asked Questions)

Q. सुभाष चंद्र बोस कैसे शहीद हुए थे?

A. सुभाष चंद्र बोस 17 अगस्त, साल 1945 को साइगॉन हवाई अड्डे से एक मित्सुबिशी की-21 भारी बमवर्षक विमान पर सवार हुए थे। अगले दिन ताइवान में रात में रुकने के बाद उनके इस विमान ने उडान भरी, जिसके तुरंत बाद ही ये बमवर्षक विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। चश्मदीदों की रिपोर्ट के अनुसार, इस प्रक्रिया में बोस को थर्ड डिग्री बर्न हुआ था। जिस कारण 18 अगस्त, 1945 को उनकी मृत्यु हो गई।

Q. सुभाष चन्द्र बोस के पिताजी को अंग्रेजों ने कौन से उपाधि दी था?

A. सुभाष चन्द्र बोस के पिताजी “जानकीनाथ बोस” को अंग्रेजों ने “रायबहादुर” की उपाधि से सम्मानित किया था।

Q. सुभाष चंद्र बोस ने कौन कौन से नारे दिए थे?

A. सुभाष चन्द्र बोस के दिए हुए नारों में से कुछ प्रसिद्ध नारे है – “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा”, “दिल्ली चलो” और “जय हिन्द“ आदि।

Q. सुभाष चंद्र का जन्म कब हुआ?

A. सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 में हुआ था।

Q. सुभाष चंद्र बोस का जन्म कहाँ हुआ था?

A. सुभाष चन्द्र बोस का जन्म कटक, ओडिशा, भारत में हुआ था।

Q. सुभाष चन्द्र बोस ने आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना कब की थी?

A. सुभाष चन्द्र बोस ने आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना साल 1843 में की थी।

Q. सुभाष चन्द्र बोस ने आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना कहाँ की थी?

A. सुभाष चन्द्र बोस और रास बिहारी बोस ने मिलकर “इंडियन इंडिपेंडेंस लीग” और “इंडियन नेशनल आर्मी” (आजाद हिन्द फ़ौज) की स्थापना सिंगापुर में साल 1943 में की थी।

Q. हिन्द फ़ौज के प्रधान सेना पति कौन थे?

A. हिन्द फ़ौज के प्रधान सेना पति सुभाष चन्द्र बोस थे।

Q. सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु कैसे हुई थी?

A. सुभाष चन्द्र बोस की मौत एक विमान दुर्घटना में हुई थी।

Q. सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु कब हुई थी?

A. सुभाष चन्द्र बोस की मौत 18 अगस्त 1945 को हुई थी।

आशा करता हूं कि आज आपलोंगों को कुछ नया सीखने को ज़रूर मिला होगा। अगर आज आपने कुछ नया सीखा तो हमारे बाकी के आर्टिकल्स को भी ज़रूर पढ़ें ताकि आपको ऱोज कुछ न कुछ नया सीखने को मिले, और इस articleको अपने दोस्तों और जान पहचान वालो के साथ ज़रूर share करे जिन्हें इसकी जरूरत हो। धन्यवाद। 

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4 Comments

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